Book Title: Dharmratna Prakaranam
Author(s): Punyavijay
Publisher: Sarabhai Manilal Nawab Ahmedabad
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श्रीधर्मरत्नप्रकरणम्
व्रतासेवनाख्यो गुणः
॥१३६॥
पाबाउ होइ दुक्खं, तं पुण धम्मेण नासए खिप्पं । बलणपलिलं गेहं, सलिलपवाहेण विज्झाइ ॥७॥ धम्मेण सुचियोणं, सिग्धं नासंति सयलदुक्खाई। एयारिसाई नियमा, नय हुंति पुणो परमवेवि ॥ ८॥ इय सुणिउं ते बुद्धा, गिहत्थधम्म दुवेवि गिण्हंति । दधम्मो सो माहणपुत्तो जाओ विसेसेणं ॥९॥ धारिज्जइ इंतो सायरो वि कल्लोलभिमकुलसेलो। नहु अनजम्मनिम्मियसुहासुहो दिव्वपरिणामो ॥१०॥ इच्चाइ चिंतयंतो, रोगायके सहेइ सम्ममिमो । सावज्जं च तिगिच्छं, मणसावि न पत्थइ कयावि ॥११॥ अह हरिणा दधम्पु, चि संसिओ सो कयाइ तो इत्थ । पत्ता असद्दहंता, दुवे सुरा विज्जरूवधरा ॥ १२॥ जंपंति इमं बालं, पउणेमो जइ करेइ णे किरियं । तस्सयणेहिं पुढे, सा केरिसिया ? इमे विति ॥ १३ ॥ महुअवलेहो पढमे, पहरे चरिमे उ जुण्णसुरपाणं । नवणीयजुयं कूरं, निसि सह पिसिएण भुत्तव्वं ॥ १४ ॥ तो दियपुत्तेणुत्वं, इमेसि एगपि नेव पकरेमि । वयभंगभीरुचिचो, जीक्वहो तह फुडो चेव ॥१५॥
तत्रार,.. द्विजज्ञातम्
"मधे मांसे मधुनि च, नवनीते तक्रतो बहिति । उत्पद्यन्ते विलीयन्ते, तद्वर्णाः सूक्ष्मजन्तवः" ॥१६॥ विज्जेहि तओ मणिय, देहमिणं धम्मसाहणं भद्द !। जह वा तह वा पउणिय, पच्छा पच्छित्तमायरसु ॥१७॥
तथा चोक्तम्सव्वत्थ संजमं संजमाउ अप्पाणमेव रक्खिज्जा । मुच्चइ अइवायाओ, पुणो चिसोही न याविरई ॥१८॥
॥१३६॥
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