Book Title: Dharmratna Prakaranam
Author(s): Punyavijay
Publisher: Sarabhai Manilal Nawab Ahmedabad
View full book text
________________
दिव्वा मणुया तिरिया, तहऽप्पसंवेयणीय उवसग्गा । पत्तेयं चउभेया उवसग्गा तेण सोलसहा ॥१॥ हास-प्पओस-विमरिस-पुढोविमायाउ तत्थ दिव्वा उ । चरिमा हासारद्धा पओसओ निट्ठिया य पुणो ॥२॥ हास-प्पओस-विमरिस-कुसीलपडिसेवणाउ माणुस्सा। भय-दोस-भोयणत्थं, अवच्च-गिहरक्खणा तिरिया ॥३॥ आयस्संवेयणिया, चउहा वायाउ तह य पित्ताउ । सिंभाउ सन्निवायाउ, वाहिणो अहव एवं तु ॥४॥ घट्टण-थंभण-लेसण-पवडणओ घट्टणं तु अच्छिम्मि । रयमाइहिं पीडा, थंभणयं होइ वाएणं॥५॥
लेसण चिरसंकोइयधरणाओ अंगुवंगसंकुडणं । खलियस्स खाणुमाइसु, पवडणयं देहभंजणया ॥६॥ तेषां सङ्गेऽपि सम्पर्केऽपि सति । तत्रातङ्कसङ्गे आरोग्यद्विजवत्, उपसर्गसङ्गे कामदेवश्रावकवत् ।
तत्रारोग्यद्विजज्ञातमिदम्अत्थि पुरी उज्जेणी, सचक्कविभूसिया हरितणु व्व । किंतु गयलक्खकलिया, बहुसंखसिरीइ उवगूढा ॥१॥ तत्थऽथि देवगुत्तो, विप्पो गुतिंदिओ पवरगुत्तो । विहियअमंदाणंदा, नंदा नामेण तस्स पिया ॥२॥ जाओ ताण सुओ जम्मपभिइ रोगेहि मुच्चए नेव । अविहियनामो रोगु, ति चेव सो विस्सुओ जाओ॥३॥ कइयावि तस्स गेहे, भिक्वत्थं कोवि वरमुणी पत्तो । पाडित्तु सुयं पाएसु, माहणेणं इमो भणिओ ॥४॥ रोगोवसमोवाय, इमस्स पहु ! कहसु काउ कारुणं । समुयाणंतेहिं कहा, न कहिज्जइ इय मुणी आह ।। ५॥ तो तेणं मज्झण्हे, सह नियपुत्तेण गंतु उज्जाणं । नमिऊण तयं पुट्ठो, एवं सो महरिसी आह ॥६॥
SUSUBBBBBS&&&&&&&&&RESORN
Jain Eduetan ini
For Private Personel Use Only
finelibrary.org

Page Navigation
1 ... 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340