Book Title: Dharmpariksha Kathanakam
Author(s): Saubhagyasagar Gani, Rangvimal Gani
Publisher: Muktivimal Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ ॥श्री पार्श्वनाथाय नमः।। ॥ जगत्पूज्य शांतमूर्ति श्रीमत्पन्यास दयाविमलगणिवरपादपद्धेभ्यो नमोनमः ॥ ॥ पू० पंडित प्रवरश्री सौभाग्यसागरविरोचत् ॥ ॥श्री धर्मपरीक्षाकथानकम् ॥ Keramश्री लन्धिसागरमरिसद्रुभ्यो नमः प्रथम परिच्छेदः अर्हसिद्धपतीन्द्रवाचकयति । श्रेष्ठाः प्रतिष्ठासदम्। पंच श्रीपरमेष्ठिनो विदधतां श्रेयाश्रियं शाखतीम् । कि 'भीमाटनदुःखखानिविलसत्संसारदन्तावलोत-सर्पदर्पसमायने सममहः पञ्चास्यरूपा इव यात्याः पदोपास्तिवशाजाडोऽपि विनाऽभयं वाङ्मयपारमेति, सदा निदानंदमयस्वल्या सा भारती रातु संत विरामे ॥२॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 132