Book Title: Collection of Prakrit and Sanskrit Inscriptions
Author(s): P Piterson
Publisher: Bhavnagar Archiological Department

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Page 107
________________ 40 VALABHI DYNASTY. kept in the museum at Bhavnagar. Each of the plates measures 12" x 9", and contains twenty-four and twenty-one lines respectively. The grant was issued to a Bråhmana or an Aryan Sådhû giving bim the village of Bhusanta, for supplying the Sådhûs living in the Vibåra built by Gobaka and in the mandiras niade by Princess Dudda at Valabhipur with food, clothes, . beddings, vessels, medicines, &c., free of charge. It is dated Valabhi Samyat 310 (A. D. 629). The language of the composition is Sanskrit prose, the cliaracter being Valabbi. TRANSLITERATION PLATE I. १ स्वस्ति बलभीतः प्रसभप्रणतामित्राणां मैनकाणामतुलबलसंपन्नमण्डलामोगसंसक्तप्रहारशतलब्धप्रता २ पात्प्रतापोपनतदानमानार्जवोपार्जितानुरागादनुरक्तमौलभूत(त्य)श्रेणीबलावासराज्यश्रियः परमाहेश्वरश्रीभ हादिव्यव ३ च्छिन्नराजवंशोमातापितृचरणारविन्दप्रणतिप्रविधाताशेषकरमपरशैशवात्मभति खगद्वितीयवाहुरेवसमदपर गजघटास्फोटन ४ प्रकाशितसत्वनिकषस्तत्प्रभावप्रणतारातिचूद्धारत्नप्रभासंसक्तपादनखरश्मिसहतिस्सकलस्मृतिप्रणीतमाग्मसम्य - क्परिप() ५ लनप्रजाहृदयरञ्जना(दन्वार्थराजशब्दो रूपका(न्ति त्यैय्यंगाम्भीय्यबुद्धिसंपद्भिः स्मरशशाङ्कादिराजोदधिषि दशगुरुधनेशानतिशयानश्शर ६ णागताभयदानपरतया त्रि(तृणवदपास्ताशेषस्वकार्यफल(6) प्रार्थनाधिकार्थप्रदानानन्दितविद्वत्सुहत्त-- ___णयिहृदयः पादचारी ७ व सकलभुवनमण्डलाभोगप्रमोदः परममाहेश्वरः श्रीगुहसेनस्तस्य सुतस्तत्पादनखमयूखसतानाव(नान्निः) सतजान्हवीजलीय ८ प्रक्षालिताशेषकल्मषः प्रणयिश तसहसोपजीव्यमानसंपद्रूपलोभादिवाश्रितत्सरभसमागामिकैगुणेस्सहनशक्तिथि ९ क्षाविशेषविस्मापिताखिलधनुर्द्धरः प्रथमनरपतिसमतिसृष्टानामनुपालयिता धर्मदायानामपाकर्ता प्रजोप १. धातकारिणामुपलवानां दयिता श्रीसरस्वत्योरेकाधिवासस्य संहतारातिपक्षलक्ष्मीपारिभोंगदक्षविक्रमोविक्रमोपसं ११ [प्राविमलप(पार्थिवश्री) परममाहेश्वरः श्रीधरसेनस्तस्य सुतस्तत्पादानध्यातस्सकलजगदानन्दनात्यद्भुत. गुणसमुदयस्थ १२ [मि]तसमग्रदिपण्डलस्समरसतविशदतो(क)भासनाथमण्डलायुतिभासुरांसपीठो व्यूढगुरुमनोरथमहा __ भारः १३ सर्वविद्यापरापरविभागाधिगमविमलमतिरापि सर्वतस्सुभाषितलवेनापितुखोपपादनीयपरितोषस्समग्रलो कागाध १४ गाम्भीर्यहृदयोपि सुचरितातिशयसुव्यक्तपरमकल्याणस्वभावः खिलीभूतकृत्य(तयगनपतिपथविशोधनाधिग तोदप्रकीर्ति Aho I Shrutgyanam

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