Book Title: Collection of Prakrit and Sanskrit Inscriptions
Author(s): P Piterson
Publisher: Bhavnagar Archiological Department

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Page 145
________________ 70 SURYA DYNASTY. stone is built up in the wall, and though inside the temple, has crumbled down in some parts and several of the letters are so mutilated as to make the deciphering very difficult. There is nothing in the inscription-so far as it can be read-which can reveal to us the purpose of its making, though it mentions the names of Bappa Gohila and his son Naravihana. The stone measures 2, 11" x 18" and contains eighteen lines written in old Devanagari character, the composition being in Sanskrit verse. It is dated Vikramu Hamrat 1028. A. D. 972. ९- तमाल कुलीनोदानाप्रपन्न २ . ३ ८. ९ पिताम ११. १२ . १३. किमपुत्रपाशपिवासादेवी दासादिभास्यसकलवर प्रांजलिः । . देव: : सा स्त्रीविरत्नसंचयपतादेवीवशायस्याद्यापिमहां श्री यप्रस तनिशातकुखिशोषममण्डलाम 1 द(?)त्यंद्विषामसहनो मृगलोचनानामिष्टोजनिष्ट नरवाहनना (मभूपः ) || यस्य प्रसाद * पुरोल्लिखित वरापरागैः || अग्रेसरक्षितिभुजामलिनीभवंति च्छत्रध्वजांशुकशिरोमणिमण्डलानि || यसः पुरामुरभिदानुक चत्रीभूगुह साधिकेनोपोन्मुखगिरिसुतापतिम प्रमेयम् || मज्जल्लाय्चधूघनस्तन तठो तरङ्गो तरायस्मिन्मेकलकन्यकां 11 १० निशुद्धपकुलोपलक्षितः छावावतारं नः कामाररोहणमतः पुटभेदनं तदुदुद्धवालबकुलावलिषु म कैलासवासमपिन स्मरविरमरारिः || अतिकमलिकपुटे पत्रभंग कपोले कुचभुविरचर्यतोदाममुक्तामणीनाम् ॥ अपिमहति नितम्बे मेखलां संदधानो दइति ॥ यदीयं ककलितां कंपयत्यक्षमालां नवनमुकुली प्रतः अस्मि मुलिगनरेंद्र चंद्रः श्रयन्यकः क्षितिपतिः शितिपीटर | राज्या TRANSLITERATION. काह १४ श्रीमा हिषाणुक्षोदण्डकमो विदितारिष्टाविणो गुहो करिघानकण्ड " · 4 पतये नितो यथार्थज्ञानदातवपुः कुशिकादयन्ये मांगरा गतरुवल्कजटा किरीटलक्ष्माण आविरभवन्मुनयः पुराणाः ॥ तेभ्योल हिमशिलाबन्धोज्यलादागिरेरासेतोरघुवंशकीर्त्तिपिशुना ती तपस्त नव • समुद्रात्ममहसः मुद्रांतरापोनिनः शापानुग्रहभूम पादांमहापूजाककुतु संयताः ॥ अवस्थामगिरीन्द्रमौलिविलसन्माणिक्यमुक्तेतन (मुक्तेतर) क्षुन्नामोदद्र (क्षुण्णामोद) तडित्कद्वारशिखर श्रेणीसमुद्भासितं १५ नरजनीरंचयमाणंमुहस्तरेतल(१)कुलीश वेश्महिमापमं कारितम् ॥ स्याद्वादाने महागदनिधिपिस्टबैतडकच्छप्रयोगगर्वपतभिदाव प्रपातोपनः ॥ Aho! Shrutgyanam

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