Book Title: Collection of Prakrit and Sanskrit Inscriptions
Author(s): P Piterson
Publisher: Bhavnagar Archiological Department

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Page 154
________________ SURYA DYNASTY. भृगुपतिरिवदृप्तः क्षत्रसंहारकारी सुरगारिव शश्वनौतिमार्गानुसारी स्मरइव रतिलोलप्रेयसीचित्तचारी शिबिरिव सबभूवन्नीस्त(वासन सत्त्वोपकारी ॥५०॥ जटाधरः सखडेंदु. करालः क्रुरक्राल्लिति कृन्तनः भाति यस्य रणे पाणी खड्ग :कल्पांतभैरवः ॥५१॥ तास्मन्नुपरतैश्वर्ये गोत्रभित्तुल्याणि उदियाय महीपष्ट शुचिवां महीश्वरः ॥५२॥ ऊयोगप्रसरत्तुरंगनखरक्षुण्णः क्षमारेभिर्येजा(ना)धायि तरंगिणीदिविषदामुघे(वे)लपूराकुला स्वच्छाा नवसं. गसंभूतमुदामानंद जैरश्रभिः शनृणां पुनरेव संभृतश्नया:(शोकजनितः) पुणे (च)चक्रक्षिणी ॥५३॥ पत्रैः पत्रावलीनां समजान रचनाधातुभिः पादरागो धूलीमिः कंदराणां विशदमलयजालेपलश्मीरुदारा गुंजा भिरिवल्ली यदरिमृगदशामित्यरण्योप भूषासौंदर्य नैव नष्टं शबरसहचरीनिर्विशेषं गतानां ॥५४॥ यद्यात्रासु रजस्तानः क्षितिारयं मंदाकिनीवारीषु स्नात्वा दीव्यमिवाकरोदिति रवेचिबं स्पृशंती महः एतेनेय यदि क्षितीशमाधिरैरन्यैरहतापिता संग्रामेषु तदा दुनोतु भगवान् मामेष भासांपतिः ॥५५॥ ततः प्रथिनां सार्थवज्रपातोपमः प्रभुः नरवा महीपालो बभूवातुलविक्रमः ॥५६॥ ब्रह्मांडभाडोदरमंचरेण श्रमोदावदुरितामली: अपारविस्कारसमुद्रवेलास्त्रेलाकरी कीतिरमुप्यराशः ॥५॥ उद्योगे नरवर्मण: स्थगयति क्षोणारजोमंडले सामस्त्यन पलायिताः शिशुकुलस्योचवियोगाग्निना प्रासादेषु समजितस्य भयतो दंदह्यमानाचिरं कांतारेषु तु वैरिफैरवदृशः स्वास्थ्यसमासेदिरे ॥५८॥ त्रस्यदिक्पालभालस्थलावेपुलगलत्स्वेदपूराज्यसेकस्फीतज्वालावलीढाक्षितिवलयगतारातिदुपारचक्रः यस्य क्रोधान __ लोयं गगनपरिसरं गाहते भानुभंग्या संग्रामापास्तदेहान्नशितुमिव पुरोद्वेषिणः स्वर्गभाजः ।।५९॥ यावद्विश्वप्रबोधोद्यतकरनिकरी तिष्ठतश्चंद्रसूर्या यावत्पुण्या पुनीते विमलजलबहा जान्हवी सर्वलोकान् यावद्धतु नियुक्ता भुवि गिरिपतयस्तावदीशप्रतोल्यां नद्यारकीतिविशाला गुहिलकुलभवा सत्प्रशस्तिछलेन ॥१०॥ अनंतरवंशवर्णनं द्वितीयप्रशस्तौ बेदितव्यं ॥ वेदशर्मा कविश्चके प्रशस्तिद्वितयीमिमां आत्मनः कीत्तिविस्फूर्ति समार्गातमिवापरां ॥६॥ सज्जनेन समुत्कीणां प्रशस्ति: रिपल्पिनामुना संवत् १३३ श्वआषाढशुदि३शुक्रे पुष्ये निःपन्ना श्रीरस्तु शुभंभवतु ॥॥ TRANSLATION. 1. Bow to Sri Ekalingaji; bow to Siva. May the two lotus-like feet of Sri Samadhisvara, the god of gods, which give great pleasure, which are of a fine white colour, which are bright with moon-like nails, and the like of which is never seen in all the worlds, protect this world from calamity, 2. May the three-eved Sankara, who bears Gavgå on his head as if it were (kept) there to pacity the heat of the blazc of the very furious fire issuing freely out of the third eye, and who bears an auspicious digit of the moon that has ncctar-like rays, as if to destroy the effect of the Kalakata (poison) located in the throat, hless all good men. 3. May Chandrachuda whọ while rolling in the pride of having, on the slope of the Mountain, defeated Smara, has his powerful arrow- the first Sakti (Parvuti)-joined to lis body and the blazing moon to his head, protect you. Ahol Shrutgyanam

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