Book Title: Chari Palak Padyatra Sangh
Author(s): Rajhans Group of Industries
Publisher: Rajhans Group of Industries

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Page 13
________________ चेतन ! भावयात्रा के लिए आंखे बंद कर दें और कल्पना करना, कि अनंतोपकारी देवाधिदेव तथा परम गुरुदेव की कृपा से हमें आकाशगामिनी विद्या प्राप्त हुई है और हम आकाश के रास्ते से श्री सिद्धाचल महातीर्थ पर जा रहे हैं। बीच में शंखेश्वर वगैरह तीर्थ आते हैं। "नमो जिणाणं" कहके वल्लभीपुर होकर जा रहे हैं । आँख्ने खोलकर अहाहा.... ! देखो, हम देखते ही देखते शत्रुजय के समीप पहुंच गए हैं, देखो यह जो दिख रहा है, वही है श्री गिरिराज । बोलो "श्री शत्रुजय गिरिराज की जय" चलो हम नीचे उतरें। चेतन ! चलते रहें । अब हम जय तलहटी के समीप आ पहुँचे हैं। यहां निर्मित विशाल गेट के अंदर दोनों ओर दो हाथी शोभायमान हैं। जब राजा, महाराजा सिद्धगिरि की यात्रा पर आते तब वे हाथी से नीचे उतरकर पैदल यात्रा करते थे। उसके प्रतीक स्वरुप दोनों ओर हाथी के पुतले खड़े किये हुए प्रतीत होते हैं मानों वे तीर्थयात्रियों का स्वागत कर रहे हों। चेतन ! हम "निसीहि कह कर एक-एक कदम बढ़ाते हुए करोड़ों भवों के अपने पापों का नाश करते हुए एक-एक सीढ़ी चढ़ रहे है। सीढ़िये समाप्त होने पर चौक आया । चेतन ! हम चलते जाये और मन में सिद्धगिरि की महिमा का गुंजन करते जाये। वन्दना, वन्दना, वन्दना रे, गिरिराज को सदा मोरी वन्दना रे... "गिरिवर दर्शन विरला पावे, परव संचित कर्म खपावे चेतन ! यह जय तलेटी (तलहटी) आई । यह स्थान एक युग में "मनमोहन पाग" के नाम से विख्यात थी। परंतु यहाँ पर चैत्यवंदन के बाद भक्तों के हृदय में से "बोलो आदीश्वर भगवान की जय" यह उद्गार निकल पड़ता है । जय" शब्द से इसका नाम पावर T "सिद्धाचल गिरि लमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः 811 Manesatano

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