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चेतन ! यहाँ एक विशेष घटना भी हो चुकी है। एक बार वस्तुपाल-तेजपाल संघ लेकर गिरिराज आये थे। दादा आदीश्वर भगवान के दर्शन करके संघ लौटता हुआ यहाँतक आया, उस समय सामने ढेर के ढेर पुष्प लेकर माली चढ रहा था । संघ को लौटता देख्न वह अत्यन्त निराश होगया । माली को इस प्रकार निराश होता देख कर संघवी वस्तुपाल
तेजपाल ने कहा, "अरे भाई ! जिस प्रकार आदीश्वर दादा पूजनीय है, उसी प्रकार यह गिरिराज भी पूजनीय है, ला तेरे पुष्प, हम यहाँ से गिरिराज का सम्मान करें, उसे बधायें ।" माली को उदारता पूर्वक खूब धन दिया, माली अत्यंत खुश हो गया। वाह रे संघवी ! धन्य है तेरी उदारता !!
प्रभुजी आव्यो हिंगलाजनो हाड़ो के,
केड़े हाथ देई चढ़ो रे लोल... चेतन ! अब तो सामने की ओर सीढ़ियाँ ही सीढ़ियाँ दृष्टिगोचर हो रही हैं, और वह है, हिंगलाज की चढ़ाई (हडा) है । घबराना मत । पहले जब सीढ़ियाँ नहीं थी, तब यह चढ़ाई अत्यन्त भयानक प्रतीत होती थी। अच्छे अच्छे बलिष्ठ व्यक्ति भी थक जाते थे और इसीलिए कहावत प्रसिद्ध हुई थी कि -
"आव्यो हिंगलाजनो हड़ो, केड़े हाथ दई ने चढ़ो । फूट्यो पाप नो घडो, बाँधो पुण्य नो पड़ो।"
इस प्रकार पुजारी यहाँ खड़ा -खड़ा इन पंक्तियों का उच्चारण करता था और यात्रियों के उत्साह में अभिवृद्धि करता था।
(कुछ सीढ़ियाँ चढ़ने के पश्चात् चेतन प्रश्न करता है)
गुरुदेव ! दाहिनी ओर की इस दीवार के गोख में जिस हिंगलाज माता की पूजा होती है, वह कौन है ?
“सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः' 18
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