Book Title: Chari Palak Padyatra Sangh
Author(s): Rajhans Group of Industries
Publisher: Rajhans Group of Industries

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Page 44
________________ चेतन ! इस ढूंक में ऋषभदेव मूलनायकजी के दर्शन करके पुंडरिक स्वामी की प्राचीन मूर्ति के दर्शन करें । विद्याधर कुलीन संग्रामसिद्ध मुनि ने प्रभु ऋषभदेव और पुण्डरिक स्वामी के चरणों का ध्यान कर अनशन किया। उनके समाधि मरण के पश्चात् श्रेष्ठि राधेयक-पुत्र अम्बेयक ने इस प्रतिमा का संवत् १०६४ में निर्माण कराया । शत्रुजय पर यह प्रतिमा सर्वाधिक प्राचीन है । चेतन ! यहाँ पर "नमो सिद्धाणं" कह कर धन्यता का अनुभव करें। आवश्यक नियुक्ति के आधार पर "महावीर ना मुखडा थी फूलडां झरे ने गणधर गूंथे माल" का शिल्प बताया गया है। ___ चेतन !"नमो जिणाणं" कहकर आगे देहरियों में दर्शन कर ढूंक से बाहर चलें। ___चेतन ! क्रमश : नूतन एवं अन्य देहरियाँ में दर्शन करते-करते कुछ आगे जाकर हम गंधारिया चौमुखजी के दर्शन करने के लिए पहुंचते है । अकबर प्रतिबोधक जगत् गुरु हरसूरिजी महाराज साहेब संघ लेकर यहाँ आये थे । उस समय यहां ७२ संघ इकट्ठे हुए थे । गंधार का युवा श्रावक रामजी अपनी युवा पत्नी के साथ यहाँ आया हुआ था । गुरुदेव ने रामजी को स्मरण कराया कि "ब्रहाचर्य व्रत ग्रहण करने का यह अपूर्व अवसर है, क्योंकि आपने एक बार कहा था कि एक पुत्र का जन्म हो जाने के पश्चात् मैं यह भीषण व्रत धारण करूँगा।" गुरु-वचन को शिरोधार्य करके रामजी ने तुरंत वासना को तिलांजलि देदी । अपनी पत्नी (उम्र २२ वर्ष) के साथ ब्रहाचर्य का भीषण व्रत ग्रहण कर लिया। ७२ संघों ने अन्य व्रत पच्चखाण अंगीकार किये । इस हर्ष की स्थाई स्मृति में विक्रम संवत् १६२० में रामजी वर्धमान व उसके भाईयों ने आ. दानसूरिजी महाराज व आ.हीरसूरिजी म. के उपदेश से इस सुन्दर जिनालय का निर्माण करवाया । ऐसा इस मंदिर में स्थित लेख से ज्ञात होता है। “सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 42 Jain Education Internatang Carelprary.org

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