________________
चाहा - क्या प्रोब्लेम है ? सोमपुरा ने कहा : “ मंदिर ऊंचाई पर है। प्रदक्षिणा वाला मंदिर बनाये तो हवा भरती है और मंदिर फटता है और यदि प्रदक्षिणा बिना बनाये तो वंशवृद्धि नहीं होती, क्या करना ?" मंत्रीश्वर बाहड का निर्णय एकदम स्पष्ट था । वंशवृद्धि की चिंता छोडो, मंदिर की रक्षा होनी चाहिये । तीर्थोद्धार हुआ । वाह रे बाहड ! धन्य तेरी तीर्थ भक्ति ! युगों तक अमर रहेगा तेरा बलिदान । पंद्रहवाँ उद्धारः
संवत १३७१ में पाटण के संघपति समराशाह ओसवाल ने करवाया । एक शेठ के चार बेटे थे । बूढापा आया, भोले बनकर संपत्ति के चार भाग कर दिया । सेवा बंद हो गई । गुप्तधन निकाल कर पलंग के पायों में डाल दिया । “अब नहीं दूंगा।” मरते दम नहीं बताया। लडकों ने पलंग सहित शेठ को स्मशानमें छोड दिया। _ उज्जैन में मां बेटे रहते थे । बालाशाह छोटे थे । माता ने बेटे को बाजार भेजा । एक बूढे माँजी स्मशान का पलंग लेकर बैठे थे। "बेटा ! पैसे की जरुरत है । मुफ्त में पैसा नहीं लूंगी । पलंग ले लो। "पैसा देकर पलंग ले आया । दाने दाने पे लिखा खाने वाले का नाम । माँ ने कहा - बेटा ! झोपडी छोटी है । इतना बडा पलंग कहां रखेंगे ? खोलकर गठरी बांध कर रख दें। "पलंग खोला तो बेशुमार किमती रत्नों का ढग हो गया । माता पुत्रने सोचा था यह धन नसीब से मिला है । खा गया सो खो गया, दे गया सो ले गया। अब उसे नसीब बढाने में लगायेंगे । सात क्षेत्र में व्यय करेंगे।" धन तो बहुत लोगों के पास है पर दिल बहुत कम लोगों के पास होता है !
दिल्ली में एक छोटी सी घटना हुई । मंत्रीश्वर समराशाह ओशवाल की पत्नी पूजा करने गई । भीड काफी थी । बूढे माँजी को धक्का लग गया । माँजी चिल्लाई "कौन सा पालिताणा का संघ निकाला कि इतना उछल रही हो?" मंत्री पत्नी को यह वाक्य चुभ गया । कोपघर (पहले यह व्यवस्था थी आज तो पूरा घर ही कोप भवन है !)
"सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाबल गिरि नमो नमः' 53
www.jainelibrary.org