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कोयल टहंक रही मधुवन में, पार्श्व शामलीया वसो मेरे दिल में, काशी देश वाणारसी नगरी, जन्म लियो प्रभु क्षत्रियकुलमें.
कोयल०१
बालपणां मां प्रभु अद्भुत ज्ञानी, कमठको मान हो एक पलमें.
कोयल०२
नाग निकाला काष्ठ चिराकर. नागकुं सुरपति कीयो एक छीन में.
कोयल०३
संयम लई प्रभु विचरवा लाग्या, संयमे भींज गयो एक रंग में.
कोयल०४
समेतशिखर प्रभु मोक्षे सिधाव्या, पार्धजी को महिमा तीन जगत में.
कोयल०५
उदयरतन की यही अरज है, दिल अटको तोरा चरण कमल में.
कोयल०६
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