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पार्श्व जिणंदा माता वामाजी के नंदा,
तुम पर वारी जाउं घोल घोल रे... हारे दरवाजे तेरे खोल खोल रे,
हम दर्शन को आये दौड दौड रे... पूजा करूंगा मैं तो धूप धरूंगा,
फूल चढाउं बहु मोल मोल रे... तूं मेरा ठाकर मैं तेरा चाकर,
एक वार मोशुं बोल बोल रे..... शंखेश्वर मंडन सुंदर मूरत,
मुखडं ते झाकम झोल झोल रे... रूप विबुधनो मोहन पभणे,
रंग लाग्यो चित्त चोल चोल रे...'
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मेरे साहिब तुमही हो, प्रभु पास जिणंदा ।
खिजमतगार गरीब हूं, मैं तेरा बंदा । मेरे० १ में चकोर करुं चाकरी, जब तुमही चंदा ।
चक्रवाक में हुई रहूं, जब तुमही दिणंदा ॥ मेरे० २ मधुकर परे मैं रणझणुं, जब तुम अरविंदा ।
भक्ति करूं खगपति परे, जब तुम गोविंदा ॥ मेरे० ३ तुम जब गर्जित धन भये, तब में शिखिनंदा,
तुम जब सायर मैं तदा, सुरसरिता अमंदा ॥ मेरे० ४ दूर करो दादा पासजी, भव-दुखका फंदा,
वाचक जस कहे दासकुं, दियो परमानंदा ॥ मेरे० ५
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"सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः" 100
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