Book Title: Chari Palak Padyatra Sangh
Author(s): Rajhans Group of Industries
Publisher: Rajhans Group of Industries

View full book text
Previous | Next

Page 77
________________ सिंहासने मणि- मयूख - शिखा-विचित्रे, विभ्राजते तव वपुः कनकावदातम् । बिम्बं वियदविलसदंशु-लता-वितानं, तुङ्गोदयाद्रि-शिरसीव सहस्ररश्मैः कुन्दावदात-चल-चामर - चारु - शोभं, विभ्राजते तव वपुः कलधौत-कान्तम् उद्यच्छशाङ्क- शुचि-निर्झर-वारि-धार मुच्चैस्तटं सुर-गिरेरिव शात- कौम्भम् छत्र-त्रयं तव विभाति शशाङ्क-कान्त मुच्चैः स्थितं स्थगित- भानुकर-प्रतापम् मुक्ताफल-प्रकर-जाल- विवृद्ध-शोभं, प्रख्यापयत्-त्रिजगतः परमेश्वरत्वम् उन्निद्र - हेम-नव-पङ्कज-पुञ्ज- कान्ति पर्युल्लसन्नख - मयूख-शिखाभिरामौ पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र ! धत्तः, पद्मानि तत्र विबुधाः परिकल्पयन्ति इत्थं यथा तव विभूतिरभूज्जिनेन्द्र !, धर्मोपदेशन-विधौ न तथा परस्य यादृक् प्रभा दिनकृतः प्रहतान्धकारा, श्च्योतन्मदाविल-विलोल- कपोल-मूल, मत्त-भ्रमद्-भ्रमरनाद-विवृद्ध-कोपम् ऐरावताभमिभमुद्धत-मापतन्तं, दृष्ट्वा भयं भवति नो भवदाश्रितानाम् तादृक् कुतो ग्रह-गणस्य विकाशिनोऽपि ॥३३॥ भिन्नेभ-कुम्भ-गलदुञ्ज्चल - शोणिताक्तमुक्ताफल-प्रकर-भूषित-भूमिभागः ॥२९॥ बद्धक्रमः क्रमगतं हरिणाधिपोऽपि, नाक्रामति क्रमयुगाचल-संश्रितं ते ॥३०॥ ॥३१॥ ॥३२॥ ॥३४॥ ॥३५॥ Jaitra dilaication Inten" सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः" 75

Loading...

Page Navigation
1 ... 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140