Book Title: Chari Palak Padyatra Sangh
Author(s): Rajhans Group of Industries
Publisher: Rajhans Group of Industries

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Page 89
________________ ऋषभदेव हितकारी जगत गुरु ऋषभदेव हितकारी, प्रथम तीर्थंकर प्रथमनरेसर, प्रथम यति व्रतधारी वरसीदान देई तुम जग में, इलति इति निवारी, तैसी काही करत नाहि करुणा, साहिब बेर हमारी मागत नहि हम हाथी घोडे, धन कन कंचन नारी, दीओ मोहे चरणकमलकी सेवा, याहि लागत मोहे प्यारी ३ भवलीला वासित सुर डारे, तुम पर सबही उवारी, मैं मेरो मन निश्चय कीनो, तुम आणा शिरधारी ऐसो साहिब नहि कोई जगमें, यासुं होय दिलधारी, दिलही दलाल प्रेम के बीचमें तिहां हठ खेंचे गमारी तुमहो साहिब में हुं. बंदा, या मत दीओ विसारी, श्रीनयविजय विबुधसेवक के, तुम हो परम उपकारी 1 . ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम माहरो, और न चाहुं रे कन्त, रीझयो साहेब संग न परिहरे, भांगे सादि-अनन्त प्रीतसगाई रे जगमां सहुं करे, प्रीतसगाई न कोय, प्रीतसगाई रे निरुपाधिक कही, सोपाधिक धन खोय २ कोई कंत कारण काष्ठभक्षण करे, मिलशुं कन्तने धाय, ए मेलो नवि कदीए संभवे, मेलो ठम न ठय कोई पतिरंजन अति घणुं तप करे, पतिरंजन तन ताप, ए पतिरंजन में नवि चित धर्यु, रंजन धातु मिलाप कोई कहे लीला रे अलख (२) तणी, लख पूरे मन आश, दोष-रहितने लीला नवि घटे, लीला दोष विलास चित्तप्रसन्ने रे पूजन फल कडं पूजा अखण्डित एह, कपटरहित थई आतम अर्पणा, आनन्दघन पद रेह Jain Education Internal me"सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः' 87 www.jainelibrary.org

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