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तुम दरिसण भले पायो, प्रथम जिन तुम. ॥टेक।। नाभिनरेसर नंदननिरुपम, माता मरुदेवा जायो आज अमीरस जलधर वुठ्यो, मानु गंगाजले नाह्यो । सुरतरु सुरमणि प्रमुख अनुपम, ते सवि आज में पायो युगला धर्म निवारण तारण, जग जस मंडप छायो । प्रभु तुज शासन वासन समकित, अंतर वैरी हठायो कुदेव कुगरु कुधर्म निवासे, मिथ्यामतमें फसायो । में प्रभु आजथी निश्चय कीनो, सवि मिथ्यात्व गमायो बेर बेर करूं विनति इतनी, तुम सेवा रस पायो । ज्ञान विमल प्रभु साहिब नजरे, समकित पूरण सवायो
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बालुडो निस्नेही थई गयो रे, छोड्युं विनीतानुं राज, संयम रमणी आराधवा लेवा मुक्तिनुं राज, मेरे दिल बसी गयो वालमो माता ने मेल्या ऐकला रे, जाय दिन नवि रात, रत्न सिंहासन बेसवा, चाले अडवाणे पाय वहालानुं नाम नवि विसरे झरे आंसुडानी धार, आंखलडीये छाया वली, गया वर्ष हजार केवल रत्न आपी करी रे, पूरी मातानी आश, समवसरण लीला जोईने, साध्या आतम काज भक्तवत्सल भगवंतने रे नमे निर्मल काय, आदि जिणंद आराधतां, महिमा शिव सुख थाय
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"सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः" "86 jainelibrary.org