Book Title: Chari Palak Padyatra Sangh
Author(s): Rajhans Group of Industries
Publisher: Rajhans Group of Industries

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Page 69
________________ सरणदयाणं, बोहिदयाणं. ५. धम्मदयाणं, धम्मदेसयाणं, धम्मनायगाणं, धम्मसारहीणं, धम्मवर-चाउरंतचकुवट्टीणं. ६. अप्पडिहय-वरनाणदसणधराणं, विअट्टछउमाणं. ७. जिणाणं-जावयाणं, तिन्नाणं तारयाणं; बुद्धाणं बोहयाणं, मुत्ताणं मोअगाणं. ८. सव्वन्नूणं, सव्वदरिसीणं, सिवमयल-मरुअ-मणंत-मक्खय-मव्वाबाह मपुणरावित्ति सिद्धि गई-नामधेयं, ठाणं-संपत्ताणं, नमो जिणाणं जिअभयाणं. ९. जे अ अईआ सिद्धा, जे अ भविस्संति णागओ काले; संपई अ वट्टमाणा, सब्वे तिविहेण वंदामि. १०. जावंति चेइआईं उड्ढे अ, अहे अ तिरियलोए अ; सव्वाइं, ताई वंदे, इह संतो इत्थ संताई. (एक खमासमणा देकर) जावंत केवि साहू, भरहेरवय-महाविदेहे अ सव्वेसिं तेसिं पणओ, तिविहेण तिदंडविरयाणं. नमोऽर्हत् नमोर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः (स्तवन बोलना) स्तवन आज मारा प्रभुजी ! सामु जुओने, - 'सेवक' कहीने बोलावो रे; अटले हुं मनगमतुं पाम्यो, 2 रूठडां बाळ मनावो, मारा सांई रे, आज०१ पतितपावन शरणागतवत्सल, ओ जश जगमां चावो रे मनरे मनाव्या विण नहि मूक, अहीज माहरो दावो मारा०२ कब्जे आव्या हवे नहि मूकुं, जिहां लगे तुम सम थावो रे; जो तुम ध्यान विना शिव लहिले, तो ते दाव बतावो मारा०३ महागोप ने महानिर्यामक, एवा एवा बिरुद धरावो रे; तो शं आश्रितने उद्धरता, बहु बहु शुं रे कहावो मारा० ४ 'सिद्धाचल गिरि नमो नमः - विमलाचल गिरि नमो नमः 67 Private US

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