Book Title: Chari Palak Padyatra Sangh
Author(s): Rajhans Group of Industries
Publisher: Rajhans Group of Industries

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Page 61
________________ र रायण पाटका का तीसरा चैत्यवंदन एह गिरि उपर आदिदेव, प्रभु प्रतिमा वंदो, रायण हेठे पादुका, पूजीने आणंदोर १ एह गिरिनो महिमा अनंत, कुण करे वखाण, चैत्री पूनमने दिने, तेह अधिको जाण २एह तीरथ सेवो सदा, आणी भक्ति उदार श्री शत्रुजय सुखदायको, दान विजय जयकार रायण-पादुका स्तवन नीलुडी रायण तरु तले, सुणसुंदरी, पीलुडा प्रभुना पायरे, गुणमंजरी उज्जवल ध्याने ध्याईए, सुण. अही ज मुक्ति उपाय रे. गुण. शीतल छायडे बेसीए, सुण. रातडो करी मन रंगे गुण. पूजीए सोवन फूलडे, सुण. जेम होय पावन अंग रे, गुण. खीर जरे जेह उपरे, सुण. नेह धरीने अह रे, गुण. त्रीजे भवे ते शिवलहे, सूण. थाये निर्मल देह रे, गुण. प्रीतधरी प्रदक्षिणा, सुण. दीओ एहने जे सार रे गुण. अभंग प्रीति होय तेहने, सुण. भवोभव तुम आधार रे गुण. ४ कुसुम पत्र फळ मंजरी, सुण. शाखा थड ने मूळ रे गुण. - देव तणा वासाय छे, सुण. तीरथ ने अनुकूल रे गुण. ५ तीरथध्यान धरो मुदा, सुण. सेवो अहनी छांय रे, गुण. । ज्ञान विमल गुण भाखीयो, सुण. शत्रुजय महात्म्य मांही रे, गुण. ६ रायण-पादुका स्तुति श्री शत्रुजय आदि जिन आव्या, पूर्व नवाणुं वारजी, अनंत लाभ इहां जिनवर जाणी, समोसर्या निर्धारजी; विमलगिरिवर महिमा मोटो, सिद्धाचल ईणे ठामजी, कांकरे कांकरे अनंता सिद्धा, अकसो ने आठ गिरि नामजी “सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः' 59 wain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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