Book Title: Chari Palak Padyatra Sangh
Author(s): Rajhans Group of Industries
Publisher: Rajhans Group of Industries

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Page 45
________________ धन्य है रामजी ! धन्य है तेरी वासना - विजय को ! - इसमें मूलनायक श्री शान्तिनाथ भगवान हैं । चौमुख प्रतिमाजी हैं।"नमो जिणाणं"। गोख में २४ तीर्थंकरों की माताएँ उन्हें अपने पास लेकर खड़ी प्रतीत होती हैं। ॐ चेतन ! तीसरी प्रदक्षिणा के अन्त में श्री पुण्डरीक p. स्वामी के दर्शन कर लें । ये पुण्डरीक स्वामी (मूलनाम ऋषभसेन) दादा ऋषभदेवजी के पौत्र व प्रथम गणधर थे। श्री ऋषभदेव भगवान ने पुण्डरीक गणधर को कहा था कि तुम इसी सिद्धगिरिराज पर केवलज्ञान एवं निर्वाण प्राप्त करोगे । अत: वे अपने पाँच करोड़ शिष्यों के साथ इस गिरिराज पर आकर फाल्गुन सुद १५ को अनशन करके केवल ज्ञान प्राप्त कर चैत्र सुद १५ को मोक्ष में गये। तब से इस गिरिराज का नाम पुण्डरीक गिरि पड़ा है । विक्रम संवत् १५८७ में करमाशाह ने इस प्रतिमाजी की प्रतिष्ठा कराई थी। 0 चेतन ! देख्न तो सही । पुण्डरीक स्वामी भगवान ऋषभदेव के - सामने देख्न रहे हैं। भगवान अपने गणधर पर अमृत-दृष्टि डाल रहे हैं। ७। गुरु-शिष्य की जोड़ी अनुपम आनन्द की प्रेरणा दे रही है । चेतन ! हम यहाँ पर चौथा चैत्यवन्दन कर लें। 6. चेतन ! चल, अब जल्दी कर। तीन प्रदक्षिणाएं दे दी हैं । अब दादा के दर्शन - वन्दन करें। ID "बोलो आदीश्वर भगवान की जय" चेतन ! द्वार में प्रवेश करने पर जिस अद्भुत प्रतिमा के दर्शन के लिए हम तड़प रहे थे, उनके सुभग दर्शन हो रहे हैं। प्रशमरस से भरपूर दादाजी की मुख मुद्रा के दर्शन से लोगों के । D अंतर में से ध्वनित होते हुए भाव... "माता मरुदेवी ना नंद, देखी तारी मूरति मारु मन लोभापुंजी.....", शेजूंजा गढ ना वासी रे, मुजरो मानजो रे....." off सिद्धाचल गिरि नमो नमः ॐ विसलाचल गिरि नमो नमः 43 www.jainelibrary.org

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