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इत्यादि कवितामयी वाणी द्वारा व्यक्त होते हैं । ये सुनते ही ऐसा लगता है कि कवि का ही नहीं पर भक्त का भी अंतर द्रवित होकर इन गीतों को गुनगुना रहा है........।
चेतन ! देश देशान्तरों से हजारों किलोमीटर दूर से आए हुए भावुक यात्री श्री आदिनाथ दादा की अनुपम, भव्य, तेज पूंज सम, अलौकिक व चमत्कारी मूर्ति के दर्शन करके अपनी आत्मा को धन्यातिधन्य मानते हैं, उनकी आत्मा प्रफुल्लित बनती है । वे जगत के सुख-दुःख भूल जाते हैं, भावना बलशाली बनती है और प्रभु के चरणों में सर्वस्व अर्पण करने की अभिलाषा जागृत होती है । स्वर्ग की किसी भूमि में बैठे हों, ऐसा हमें भास होता है.....। यहां से हटने का मन नहीं होता है, बार-बार देखने पर भी मन तृप्त नहीं होता है, ऐसा दादा की प्रतिमा का अनुपम आकर्षण है।
__ आ. श्री विद्यामंडनसूरीजीने ५०० आचार्यों के साथ अंजन किया तब परमात्माने मनुष्य की तरह सातबार सांस ली थी .... अहो आश्चर्यम् !
चेतन ! उन अलौकिक प्रभावशाली प्रतिमा के दर्शन करते समय "किं कर्पूरमयं....", "आव्यो शरणे...." और "आदिमं...." आदि प्रभु
"सिद्धाचल गिरि नमो नमः - विमलाचल गिरि नमो नमः” 44 www.jainelibrary.org. SEE
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