Book Title: Chari Palak Padyatra Sangh
Author(s): Rajhans Group of Industries
Publisher: Rajhans Group of Industries

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Page 34
________________ शिखर पर लहराती हुई ध्वजायें तो मानो एक संदेश दे रही है कि अरे ! भाग्यशालियों ! Oshunya.net आप दूसरे स्थान पर क्यों घूम रहे हो ? यदि आप सच्ची विजय प्राप्त करना चाहते हो, तो आप युगादिदेव आदीश्वर प्रभु जाओ। आपकी विजय निश्चित है । की शरण में आ ao F यदि हम दादा के जिनालय के शिखर पर चढ़ जायें, तो हमें गजब सा दृश्य दिखाई देता है । जिनालयों की पंक्ति इस प्रकार शोभित हो उठती हैं मानों कि हिमालय के भ्रम से आकाश गंगा यहाँ पर उतर न आई हो ! इसलिए मुनियों ने गाया है - "मानु हिमगिरि विभ्रमे. आई अम्बर गंगा ।" गुरुदेव ! शीघ्र चलिये, अब तुरन्त दादा के दर्शन कर लें । चेतन ! शीघ्रता मत कर। दादा के दर्शन ऐसे ही नहीं किये जाते । क्योंकि जिस प्रकार भौंरा रस लेने के लिए पुष्प पर तुरंत नहीं बैठता है, परंतु पहले गुंजन करता है । फिर पुष्प पर बैठता है । उसी प्रकार से हमें भी प्रभु दर्शन रुपी रस लेने के लिए तीन प्रदक्षिणा देकर फिर दादा के समक्ष जाना चाहिए। " चैत्यवन्दन भाष्य" में भी प्रदक्षिणा देने की विधि बताई गई है । कहा है कि " तिन्नि निसीही पयाहिणा तिन्नि चेव पणामा" । यहां की प्रदक्षिणा में मानों अनेक तीर्थों की यात्रा का आनंद देने की अखूट शक्ति भरी हुई है। इसकी अनुभूति तो जो प्रदक्षिणा दे, वही कर सकता है । इन तीन प्रदक्षिणाओं के प्रवास में श्री सम्मेशिखरजी, अष्टापदजी, गिरनारजी, महाविदेह क्षेत्र, १०२४ जिन प्रतिमा १४५२ गणधर पादुकाएँ, नये आदीश्वरजी, रायणवृक्ष, नई टुंक आदि मंदिरों के दर्शन से अनेक तीर्थों की यात्रा जैसा अनुभव होता है । Jain Education International " सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः" & 32 www.jainelibrary.org

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