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मंदोदरी व लब्धिवंत गौतम स्वामी की मूर्ति स्थापित हुई है, तथा सीढ़ियों पर १५०० तापस बताए हुए हैं। I चेतन ! इस अष्टापदजी मंदिर में प.पू.आ
हीरविजयसूरीश्वरजी म.सा. (आ.धनेश्वरसूरीश्वरजी म.सा.) की खडी मूर्ति है तथा संवत् १३८३ जेठ वद ८ को प्रतिष्ठित रुद्रपल्लीय श्री चारुचन्द्रसूरिजी म.सा.की दूसरी मूर्ति भी है । "मत्थएणवंदामि"
चेतन ! बाहर निकल कर देहरियों के दर्शन करते हुए हम आगे बढ़ते हैं, तब रायण वृक्ष आता है।
चेतन ! अब हम रायण वृक्ष को तीन प्रदक्षिणा दें। चेतन ! ऋषभदेव भगवान ६९ कोड़ा कोड़ी, ८५ लाख करोड़, ४४००० करोड़ (निन्नाणवे पूर्व) बार सिद्धाचल जी तीर्थ पर आये, तब इस रायण वृक्ष के नीचे समवसरे थे । इस रायण वृक्ष की डाल-डाल, पत्ते-पत्ते, पुष्प-पुष्प और हर फल पर देवताओं का वास है।
यह वृक्ष अति प्राचीन है व देवदेवियों से सेवित हैं।
अरे चेतन ! इस रायण के वृक्ष में से जिसके ऊपर दूध झरता है, वह आत्मा तीसरे भव में मोक्ष में जाती है, इसके पश्चिम में स्वर्ण सिद्धि व रस
. कुंपिका है। रायण तले पगलां सुखदाई, श्री ऋषभ
___ तथा गुण गाई
चेतन ! रायण वृक्ष के नीचे देहरी में आदीश्वर भगवान की विशाल सुन्दर चरण पादुका है, जिनको "रायण पगला" भी कहते हैं । इनकी प्रतिष्ठा वि. संवत् १५८७ में करमाशा ने सम्पन्न कराई थी। हमें
| "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नाम?? & 39
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