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चेतन ! दूसरे गोख में १५ वाँ उद्धार कराने वाले पाटण के समराशाह व उनकी पत्नी समर श्री की मूर्ति वि.सं. १४१४ वै.सु. १० को उनके पुत्र सज्जन एवं सालग ने बनवाई । ऐसा मूर्ति के लेख से ज्ञात होता है। ___ चेतन ! बायीं ओर से बाहर निकलने पर
देहरियों के दर्शन करके तनिक चलने पर सम्मेतशिखरजी तीर्थ के दर्शन करें। चेतन ! जो पुण्यात्माएँ सम्मेतशिखरजी नहीं जा सकती, वे यहाँ पर बिराजमान २० भगवान की चरण-पादुकाओं को वंदन कर लाभ ले सकती हैं । इसी कारण से यहाँ २० पादुकाएं प्रतिष्ठित की गई हैं। यहाँ पर २९ प्रतिमा भी हैं । "नमो जिणाणं" कहकर आगे चलने पर रायण वृक्ष के पीछे होकर एक देहरी में श्री आदीश्वर भगवान के अत्यन्त ध्यान से दर्शन करने चाहिये । भगवान के दोनों कंधों पर बालों की लटें हैं । तत्पश्चात् श्री सहस्रफणा पार्श्वनाथ के दर्शन करने पर द्वितीय प्रदक्षिणा पूर्ण हो जाती है।
चेतन ! तीसरी प्रदक्षिणा में प्रथम उज्जैन के पाँच भाईयों का जिनालय है, जिसमें सं. १६६७ में प्रतिष्ठित मूलनायकजी श्री ऋषभदेवजी हैं । तत्पश्चात् वि. संवत् १६१५ में निर्मित बाजरिया के जिनालय में श्री सुमतिनाथजी हैं । "नमो जिणाणं" कहकर आगे बढ़ने पर एक देहरी आती है।
चेतन ! यहाँ पर देहरी में अत्यंत मनोहर व अलौकिक श्यामवर्णी श्री नेमिनाथ प्रभु की प्रतिमा है । विशुद्ध
ब्रहाचर्य की साधना के लिए बाल ब्रहाचारी नेमिनाथ प्रभु की भक्ति बहुत हितावह है । शत्रुजय माहात्म्य में लिखा है कि "इन्द्र की विनंती से गृहस्थावस्था में नेमिकुमार भी यहाँ पधारे थे । यह प्रतिमा
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