Book Title: Chari Palak Padyatra Sangh
Author(s): Rajhans Group of Industries
Publisher: Rajhans Group of Industries

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Page 37
________________ में सभी मिथ्यात्वी थे । एक बार मासक्षमण के तपस्वी मुनि गोचरी वहोरने आये । उसकी सासू पानी भरने गई थी । अमका ने श्राद्ध के लिए बनाई हुई खीर मुनि को भाव-पूर्वक वहोरा दी । ईर्ष्यालु पडोसन ने चुगली खाई । सास और पति ने उसकी भर्त्सना व तिरस्कार किया अत: वह अपने दो छोटे बच्चो में से एक को अपने कमर में उठाकर और दूसरे को हाथ की अंगुली से पकड़ कर बाहर चली गई। वह दूसरों पर द्वेष करने के बदले अपने अशुभ कर्म का विचार करती हुई और सुकृत की अनुमोदना करती हुई आगे बढ़ी । एक पुत्र को प्यास लगी और दूसरे को भूख । उसने सरोवर में से पानी लेकर एक पुत्र की प्यास बुझाई और आम के वृक्ष पर से पके हुए आम का झूमका (लूम्ब) तोड़कर द्वितीय पुत्र की भूख शांत की। __दूसरी तरफ उसके घर में एक आश्चर्यजनक घटना घटी। खीर के उल्टे पड़े हुए खाली पात्र सीधे किये । वे सभी मिष्ठान्न से भरे देख अमसा (अम्बिका) को पुन: घर पर लाने के लिए चल पड़ा। अम्बिका ने दूर से उसे देखकर सोचा कि क्रुद्ध बना हुआ वह पति मेरे पास आ रहा है । मुझे पकड़ कर मेरी दुर्दशा करेगा । अत: वह जिनेश्वर परमात्मा की शरण लेकर दोनों पुत्रों के साथ समीपस्थ कुँए में कूद गई। तीनों शव तैरते हुए देख्ने । निराश बना हुआ पति भी कुँए में कूद पड़ा । अमका देवी बनी और उसका पति उसका वाहन सिंह के रुप में देव बना । ऐसा शिल्प यहां संगमरमर पर आलेखित किया है । चेतन ! यहाँ पर प्रणाम कर लें। ___चेतन ! श्री आत्मारामजी स्थानकवासी सम्प्रदाय में थे । मूर्तिपूजा का मार्ग सच्चा व आगमोक्त जानकर हिम्मत करके स्थानकवासी सम्प्रदाय का त्याग करके आचार्य देव श्री विजयानंदसूरीश्वरजी म.सा. के नाम से "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः" 35 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPAY

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