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सक चेतन ! उसके समीप देहरी में भगवान श्री ऋषभदेव की
चरण-पादुकाएँ हैं । "नमो जिणाणं" दाहिनी ओर एक कमरे में हनुमानजी की मूर्ति है, अत: यह स्थान "हनुमान हड़ा" "हनुमान द्वार' एवं हनुमान धारा" के नाम से विख्यात है।
____चेतन ! यहां से दो मार्ग जाते हैं - एक मार्ग नौ |कों की ओर तथा दूसरा मार्ग दादा की ट्रॅक की ओर जाता है । जब मोतीशा ट्रॅक का निर्माण हुआ था । तब लोग हनुमान धारा से चौमुखजी की ढूंक में से होकर अद्भुतजी के पास में से गुजरते हुए हाथी पोल
में जाते थे। चेतन ! तुझे दादा के दर्शन की उतावल है, अत: नौ ढूंकों का मार्ग छोड़कर अपन दादा की दूंक की ओर चले । बस ! अब दादा ऋषभदेव बहुत दूर नहीं हैं।
__ चेतन ! हम कुछ सीढ़ियां चढ़ें, उसके बाद कुछ समतल मार्ग पर चलें, तब सामने रामपोल दिखती है, उसके तनिक पहले दाहिनी ओर पहाड़ में खुदी हुई सीढ़ियाँ है और ऊपर गुफा में काउस्सग्ग ध्यान में खड़ी श्याम तीन मूर्तियाँ हैं । ये श्री कृष्णजी के पुत्र जाली, मयाली और उवयाली हैं । इन तीनों महापुरुषों ने भगवान श्री नेमिनाथ के पास दीक्षा अंगीकार की थी और इस गिरिराज पर अनशन करके मोक्ष गये । उन्हे "नमो सिद्धाणं कहें। "प्रभुजी आवी रामपोल के,
सामा मोती वसहि रे लोल" चेतन ! कुछ कदम आगे चलने पर रामपोल आती है।
रामपाल
सिद्धाजन गिरि नर्म नम: विमुलाचन गिरि-नमो नही
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