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उसके बाहर दाहिनी ओर एक प्याऊ है, जिसमें गर्म पानी (उबाला हुआ) उपलब्ध होता है । यह सातवां विश्राम स्थान है। बायीं ओर दही बेचने वाले बैठते हैं । इस महातीर्थ पर दही खाने से घोर आशातना होती है।
अत: चेतन ! तू दही मत खाना । अज्ञानी मनुष्य तलहटी से श्रम सहन करके यहाँ तक आते हैं और दहीं खाकर "पिकनिक मनाकर तीर्थ की घोर आशातना करते हैं।
चेतन । उन मनुष्यों को तीर्थ की आशातना करने का कटु फल भोगना पड़ेगा । तीर्थ की आशातना करने से धन की हानि होती है, व्यापार में लाभ नहीं होता, भविष्य में अन्न-पानी नहीं मिलता, भूखाप्यासा रहना पड़ता है, देह रोगग्रस्त हो जाती है, परभव में नरकमें जाना पड़ता है और वहाँ परमाधामी की कठोर यातनायें सहनी पड़ती
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___ गुरुदेव ! अब मैं कदापि यहां दहीं नहीं खाऊंगा । चेतन ! यदि समस्त यात्री समझदारी से इस प्रकार दहीं नहीं खाने का निर्णय कर लें, तो तीर्थ की आशातना अवश्य रुकेगी । अत: तू अवश्य प्रयत्न करना । चलो, आगे बढ़ें अब हमारी मंजिल दूर नहीं है। दादा आदीश्वर भगवान का दरबार अब निकट आ रहा है। हमारे हर्ष का कोई पार नहीं
है। चलो, हम रामपोल में प्रवेश करें।
चेतन ! जब रामपोल से आगे बढ़ते हैं, तब वहाँ दाहिनी ओर पाँच शिखरयुक्त विशाल जिनालय है, जिससे विमलनाथ भगवान प्रतिष्ठित है। संपूर्ण गिरिराज पर पाँच शिखर युक्त यही एक जिनालय है । इसका निर्माण औरंगाबाद निवासी शेठ वल्लभभाई मोहनदास द्वारा कराया गया था। ___चेतन ! इसके समीप तीन शिखर युक्त जिनालय है, जिसमें श्री सुमतिनाथ भगवान प्रतिष्ठित हैं । इस जिनालय का निर्माण सेठ देवचन्द कल्याणभाई सुरतवाले ने करवाया था। इन दोनों मंदिरों को "नमो जिणाणं" कहकर आगे बढ़ें।
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"सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः" 24°w.jainelibrary.org