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चेतन ! यह श्री नेमिनाथ भगवान की अधिष्ठायिका हिंगलाज माता सौराष्ट्र की रक्षिका मानी जाती थी। गिरिराज पर चढ़ते समय हिंगुल नामक राक्षस यात्रिकों को सन्तप्त करता था । अम्बिका देवी ने उसके साथ संघर्ष करके उस पराजित किया । तब उसने अपना नाम स्थायी रखने का निवेदन किया, तब अम्बिका माता ने उसकी प्रार्थना स्वीकार की । तब से अम्बिका देवी की हिंगलाज माता के रुप में पूजा होती है। "प्रणाम.... धर्मलाभ......."
चेतन ! थोडा उपर चढते हैं । श्री कलिकुंड पार्श्वनाथ की चरण पादुकाएँ दाहिनी ओर की देहरी में प्रतिष्ठित हैं । हम उनके दर्शन करते हैं । चेतन ! कादम्बरी नामक वन में भगवान श्री पार्श्वनाथ कायोत्सर्ग ध्यान में थे । उस समय वहाँ वनहाथी ने श्रद्धा-भक्ति से अपनी ढूँढ़ में पानी भरकर प्रभुजी को पक्षाल किया और कमल पुष्प चढ़ाये। हाथी मर कर देवलोक में गया । वहाँ कलिकुण्ड पार्श्वनाथ तीर्थ की स्थापना हुई।
- चेतन ! थोड़ा ऊपर चढने पर कुछ वर्षों पहले "नानो मान मोडीओ" व "मोटो मान मोडीओ" नामक प्रसिद्ध दो चढ़ाव यहाँ थे, जिसको चढ़ते हुए छोटे-बड़े सभी के मान मुड-टूट जाते थे। लेकिन अभी चेतन ! यहाँ नया रस्ता हो जाने से ये दो चढ़ाव अब लोग भूल गए हैं। - चेतन ! पुराने मार्ग में समवसरण के आकार की छोटी देहरी भी थी, जिसमें आसन्न उपकारी भगवान श्री महावीर स्वामी की चरणपादुकाएँ थीं, क्योंकि सिद्धगिरिराज पर भगवान श्री महावीर स्वामी का समवसरण रचा गया था। परंतु वे चरण पादुकायें अब श्रीपूज्य की
ढूंक में श्री पद्मावती देवी के पास में बिराजमान की गई है । चेतन ! हम सीधे नवीन मार्ग से धीरे-धीरे सीढ़ियाँ चढ़ते जायें। बीच में कुछ समतल मार्ग भी आता है।
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“सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 19
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