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"जय तलेटी' प्रसिद्ध हुआ । चेतन ! सम्मुख स्थित देहरियों में चरणपादुकाएं है । दाहिनी एवं बायीं ओर की विभिन्न देहरियों में भी चरणपादुकाएं हैं।
चेतन ! आओ "नमो जिणाणं" बोलकर सबको वन्दन करें । देहरियों के नीचे पर्वत का एक छोटा सा भाग महा पवित्रता के प्रतीक रुप में स्थापित किया गया है । यूं तो संपूर्ण गिरिराज पूजनीय एवं महापवित्र है, परंतु संपूर्ण की पूजनीयता कैसे संभाली जा सकती है ? अत: महापुरुषों ने अमुक भूमि को सीमित कर दी है । प्रतिदिन इस गिरिशिला की केशर-चंदन से द्रव्य पूजा व स्तुति स्तवना द्वारा भावपूजा होती है, और इसका नित्य अभिषेक होता है, केशरादि से आँगी (अंगरचना) होती है, पुष्पारोपण होता है । इस पावन धरा का मस्तक से स्पर्श करके यहाँ हम प्रथम चैत्यवंदन करें।
चेतन ! अब गिरिराज पर चढ़ने की तैयारी करें। बायीं तरफ श्री गोविंदजी जेवतजी खोना द्वारा निर्मित धर्मनाथ प्रभु के जिनालय में "नमो जिणाणं कहकर वंदना करें।
| चेतन ! अब हम बाबू के जिनालय की ओर सीधी सीढ़ियों से उपर चढ़कर दाहिनी ओर श्री अजितनाथ भगवान की चरण - पादुकाके दर्शन करते है । श्री अजितनाथ परमात्मा ने वहाँ वर्षावास किया था । यहाँ उनके दस हजार मुनिगण मोक्ष सीधारे थे । निन्नाणवे प्रकार की पूजा में कहा है कि - "अजितनाथ मुनि चैत्र नी रे, पूनमे दस हजार सलूणा । "नमो जिणाणं
चेतन ! गिरिराज की सीढ़ियों की दाहिनी ओर तीन देहरियाँ है, उसमें प्रथम देहरी में श्री गौतम स्वामी की चरण-पादुकाएँ हैं ।
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