Book Title: Chari Palak Padyatra Sangh Author(s): Rajhans Group of Industries Publisher: Rajhans Group of IndustriesPage 11
________________ दादा की ट्रंक का सुहाना द्रश्य चेतन ! आज हमें तीर्थाधिराज शत्रुंजय महातीर्थ की भाव-यात्रा करनी है । यह सिद्धगिरिराज एक महान् पावन भूमि है । जगत के अन्य धर्मों में किसी न किसी स्थान विशेष को पवित्र माने जाने के उदाहरण दृष्टिगोचर हो रहे हैं। जैसे हिन्दू हिमालयादि को, मुसलमान मक्का-मदीना को, क्रिश्चियन जेरुसलम तथा बौद्ध गया - बोधिवृक्ष वगैरह स्थानों को पवित्र मानते आ रहे हैं । इन धर्मों के अनुयायी मनुष्य जिंदगी में एक बार अपने अपने इन पावन स्थानों में जाकर जन्म को सफल हुआ मानते हैं । जैन धर्म में भी ऐसे कितने ही स्थान पूजनीय व स्पर्शनीय माने गए हैं। जैसे शत्रुंजय, गिरनार, आबू, तारंगा व सम्मेतशिखर आदि स्थान । इनमें भी शत्रुंजय गिरिराज को सबसे अधिक श्रेष्ठ महापवित्र एवं पूज्य माना जाता है। यह तीर्थ इस संसार व शिवनगरी के मध्य का अखंड अभंग सेतु है । इस सेतु पर आपका पर्यटन चालू रखना। एक मंगल दिन में व मंगल धड़ी में हंसते हृदय से आप शिवनगरी में निश्चय ही प्रवेश कर सकेंगे......। जैसे यहां पांडवों के साथ 20 करोड़ आत्माएं मोक्ष सीधारी हैं, अजितसेन मुनि 17 करोड, सोमयश 13 करोड, शाम्बप्रद्युम्न साढ़े आठ करोड़, राम-भरत ३ करोड़, नमि-विनमि दो करोड़, श्रीसार मुनि - सागर मुनि एवं कदम्ब गणधर एक - एक करोड़, नारदजी 11 लाख, आदित्ययश एक लाख, वसुदेव की भूतपूर्व पत्नियां 35000, दमितारी 14 हजार, अजितनाथ भगवान के 10000, मुनि थावच्चा गणधर 1000 मुनि, थावच्चा पुत्र 1000, शुकाचार्य 1000, शेलकजी 500 मुनि, प्रद्युम्न की पत्नी वैदर्भी वगैरह 4400 साध्वियाँ एवं सुभद्र मुनि 700 मुनियों के साथ मोक्ष गये हैं। अधिक क्या कहेंयह तीर्थ शाश्वत होने के कारण अनादि अनंत अतीत काल इस भूमि के एक-एक कण पर अनंत आत्माएँ मोक्ष सिधारी हैं । एवं अनंत आत्माएँ भविष्य में मोक्ष जायेगी । इसी कारण स्तवन में गाया है कि "इण गिरि साधु अनन्ता सिध्या ".... Jain Education Internation' सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः” 9 Awww.jainellbraryPage Navigation
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