Book Title: Champu Jivandhar
Author(s): Harichandra Mahakavi, Kuppuswami Shastri
Publisher: Shri Krishna Vilasa Press Tanjore
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प्रथमो लम्यः । झरीभिरिव प्राच्यपयोनिधिसकाशाद्गगनजलधिशोषणायोद्गताभिरिव बाडवाग्निज्वालाभिः प्रभारानिभिरनुरक्तमण्डले चण्डकरे उदयधराधर. शिखरमधिरूढे,
तावन्महीपालकमन्दिरान्तः पिकप्रतिस्पर्धिमनोज्ञकर्णाः । प्राबोधिकाः पेठुरुपेत्य देव्याः प्रबोधनार्थ ध्वनिभिर्गभीरैः ॥४२॥
देवि प्रभातसमयोऽयमिहाञ्जलिं ते
पनैः करैर्विरचयन्दरफुल्लरूपैः । भृङ्गालिमञ्जुलरवैस्तनुते प्रवोध__ गीति नृपालमणिमानसहंसकान्ते ॥ ४३ ॥ देवि त्वदीयमुखपङ्कजनिर्जितश्री
श्चन्द्रो विलोचनजितं दधदेणमङ्के । अस्ताद्रिदुर्गसरणिः किल मन्दतेजा
द्राग्वारुणीभजनतश्च पतिप्यतीव ॥ ४४ ॥ बलरिपुहरिदेषा रक्तसन्ध्याम्बर श्री
रविमयमणिदीपं रथ्यदुर्वासमेतम् । गगनमहितपाले कुर्वती भाक्षताव्ये
प्रगुणयति निकामं देवि ते मङ्गलानि ।। ४५ ॥ देवि त्वदीयकचडम्बरचौर्यतुङ्गा
भृङ्गावली सपदि पङ्कनबन्धनेषु । राज्ञा निशासु रचिताद्य विसृष्टहृष्टा
___ त्वां स्तौति मञ्जुलरवैरुररीकुरुष्व ॥४६ ॥ पयोजधूलीपरिवूसराङ्गः पक्षी विधूयाद्य वियोगखिन्नः । कोकः स्वकान्तां परिरभ्य तस्या वक्ने स्वचचुं कलयन्विभाति ॥ ४ ॥
हंमतलमयीं शय्यां हंसीव सिकताततिम् ।
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