Book Title: Bhuvanabhanukevalicariya
Author(s): Indahansagani, Ramnikvijay Gani
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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भुवणभाणुकेवलिचरियं
नामेण तस्स भज्जा सुदंसणा 'दंसणेण सुपसत्था ।
सारयविसारया जा सारयघणविसयसीला य ॥२३॥ जीए एसा णो तणुलट्ठी सावण्णिआ लया किंतु । तत्थ इणं पुण वयणं चंदकलाघडिअपउमं व ॥२४॥ तस्सुवरि णयणाई मरगय-माणिकपुग्गलकयाई । कमलाणि इमाणि पुणो जाणे जणहरिसजणयाई ॥२५॥ युग्मम ।। किं विउलच्छी लच्छी १ सुपव्वदेवी ध १ पव्वई वा वि ? । णिरूवमरूवं जीए जाणंति जणा पलोअंता ॥२६॥ दंता दाडिमकलिआउ जीइ अहरा 'पषालसयलाई। सामलवण्णा वेणीदंडो भुअगो पयंडो अ ॥२७॥ भुवणालवालमज्झे जा देवलय व्व रोविआ विहिणा। अमिअरसेणं सित्ता तेणं 'पञ्चंगचंगगुणा ॥२८॥ तीए जाओ अ बली तणुओ भाणु व्व पुष्वआसाए । जो होइ वढमाणो चंदु व्व सयलकलावंतो ॥२९॥ 'सत्थोहपरिस्समओ सुहडत्तण-पंडिअत्तसंपत्तो। सीहोवमाणसत्तो पण्णाविण्णायतत्तो जो ॥३०॥ जस्संगसंगमाओ गुणा वि गुरुअत्तणं गया नूणं । जह कणगसेलपासा तणाणि वि सुवण्णकंतीणि ॥३॥ "मग्गणमुहमग्गियधणवरिसणमेहो सुरायरिअमेहो । जो गुणनिहाणदेहो परिणीअणिवसुअकयणेहो ॥३२॥ कणगं व जो सविणओ सूरो इव दित्ततेअगुणवंतो । तिहुअणलोअणजणिआणंदो चंदो इव कुमारो ॥३३॥ पुहवीइ कप्परुक्खा लज्जागुणओ ''अदिस्सया जाया । ''जाणे गरिंदअत्तयदाणकलाए जिआ सव्वे ॥३॥ जेणं कुमरतं भुत्तं वीसं वासपुव्वलक्खाई। अवहरिआई करूणायंतेणं ''दुहिअदुक्खाई ॥३५॥ सुमुहुत्तम्मि उ पिउणा रज्जे ठविओ महूसवेण सुओ। "सुरभूमिरुहो जाणे जाओ जं मंजरीवंतो ॥३६॥
१. दर्शनेन सम्यक्त्वेन च ॥ २. शारदाविशारदा या शारदधनविशदशीला च ॥ ३. विपुलाक्षी लक्ष्मीः सुपर्वदेवी-देवाङ्गना वा पार्वती वाऽपि ॥ ४. प्रवालशकलानि ॥ ५. प्रत्यङ्गचङ्गगुणा-प्रत्यङ्गसुन्दरगुणा ॥ ६. सुभटत्वपक्षे शस्त्रौघपरिश्रमात् । पण्डितत्वपक्षे शास्त्रोधपरिश्रमात् ॥ ७. मार्गणमुखमार्गितधनवर्षणमेघः ॥ ८. सुराचार्य इव-पृहस्पतिवद् मेधा-बुद्धिः यस्य सः॥ ९. नृपसुताकृतस्नेहः॥ १०. अदृश्या एव अदृश्यकाः॥ ११. नरेन्द्रात्मजदानकलया, कला-नैपुण्यम् ।। १२. दुःखितानां दुःखानि ॥ १३. सुरभूमीवहः-कल्पवृक्षः ॥
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