Book Title: Bhuvanabhanukevalicariya
Author(s): Indahansagani, Ramnikvijay Gani
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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भुषणमाणुकेबलिचरिये
११७
देवगिहेसु जणेइ ण्हवणाणि सुमभरमहंतपूआओ । विरयावेइ तहा जत्ताओ [मह]भत्तिजुत्तो जो ॥१६०३।। आउन्ज-गीअ-नाडयविहावणप्पमुहपुण्णपयरेहिं । जिणवरसासणमेअं पहाविअं रायकुमरेण ॥२६०४।। जेणं दाणं दाविज्जइ दीणाण करुणानिहाणेणं । गुरुरायपासदेसे सयागमं सुणइ एगमणो ॥१६०५।। चारित्तधम्मसिन्नं समग्गमवि जस्स परिचिईसूअं । मोहमहाचरडबलं दूरेण भमइ भयभंतं ॥१६०६॥ न विसयरागो जस्स विसओ हवइ दिटिगो न दोसो वि । जम्हा उदगाओ पिव अग्गी उग्गो वि उपसंतो ॥१६०७।। गिरिराओ उच्छलमाणो पडिओ 'कदुगु व्व दूरतरं । लोहो बाहाविहुरो सुहडेणं जेण जणिओ अ ॥१६०८।। किविणतं पिसुणतं अणुमत्तं जस्स दीसप नेव । फरिस-रस-गंध-व-रवगिद्धया नवि अ अक्खाणं ॥१६०९॥ जेणावमाणिओ अविणओ गओ वासठाणअपयाणा । अन्नत्थ व तत्थ इमो विसेसओ वासिओ तेहिं ॥१६१०॥ महव-अजव-सोरिअ-उदारयापमुहगुणसहस्सेहिं । रायकुमरस्स अंगं घडियं च 'चतुम्मुहेण इमं ॥१६११।। कुमरस्स कित्तिपूरो पसरइ घणसारपरिमलु व्व जओ। जम्हा अवगुणअंगारकणो जस्स न तडम्मि ठिओ ॥१६१२।। जस्स विणयाइअगुणे दहणं रंजिआ नयरलोआ । जस्स रमंतस्स 'नयणअविसयभावं न इच्छंति ॥१६१३।। कुमरे दिटे माया-पिऊण उप्पजए अ जी हरिसो । न मुणिजइ छउमत्थेण सो पमुत्तूण जिणमेगं ॥१६१४।। खणमवि खमंति न इमे जणणिजणगा निवंगयविओगं । विणयाईण गुणाणं एस पहावो समग्गो वि ॥१६१५।। पइगेहं जस्स गुणाण कहाओ जणमुहेसु वटुंति । सव्वे वि वल्लहा जं गुणा न उण सयणसंबंधो ॥१६१६।। जस्स य गीआइं गाइज्जंते अमरसुंदरीहिं पि । भासिज्जंते जस्स य चरिआणि अहो ! सुरेहिं पि ॥१६१७॥
१. कन्दुक इव ॥ २. अणुमात्रम् ॥ ३. अक्षाणाम्-इन्द्रियाणाम् ॥ ४. चतुर्मुखेन-ब्रह्मणेत्यर्थः ॥ ५. नयनअविषयभावम्-अदर्शनमित्यर्थः॥ ६. नृपाङ्गजवियोगम् ॥
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