Book Title: Bhuvanabhanukevalicariya
Author(s): Indahansagani, Ramnikvijay Gani
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text
________________
भुवाभाणुकेवलिचरिये
'विप्पजणेणं च तओ रावा रॉयस अग्गओ विहिआ । 'मेएहिं एएहिं विटालिआ सबओ नयरी ॥१७२२।। तेणं तेसि पवेसो निअनयरीए निवारिओ रण्णा । एगय 'जुण्हमहे ते पुरे पविट्ठा विणोएण ॥१७२३॥ अच्छाइऊण वयणं गायेता महुरसद्दओ गीअं । उवलक्खिऊण लोएण कुट्टिआ कडिआ एए ॥१७२४॥ अह ते विरत्तचित्ता दक्षिणपासम्मि पव्वए चडिआ। काउमणा भिगुवायं निअदुहउत्तारणोवायं ॥१७२५।। तेहिं च अंतराले अणगारो पिच्छिओ पमोएण । पणओ तव्वयणाओ बुद्धा सुद्धा सया एए ॥१७२६॥ मुणिवरपासे अंगीकयचारित्ता इमे अ विहरति । पुहवीतले महातवपरायणा कय विमलझाणा ॥१७२७।। अह ताव हत्थिणाउरनयरे समणा समागया दुन्नि । मासखवणपारणए संभूइरिसी गओ नयरं ॥१७२८॥ मंतिवरेणं नमुइणा दिट्ठो उबलक्खिओ इमो साहू । ससरूवपयासणआसंकाए चिंतए मंती ॥१७२९।। नयराओ समणो एस कडिअव्वो त्ति भासिए पुरिसा। समणं हणंति करुणारहिआ किर लिटु-लट्ठीहिं ॥१७३०।। साहू गयावराहो हणिजमाणो 'सरोसनित्तो अ । तेजोलेसं मुंचइ धूसरिअं धूमओ नयरं ॥१७३१॥ चकवई तत्थ समागओ तह वि नोवसमइ पस रिसी। आगंतूणं चित्तगमुणिणा उवसामिओ अ इमो ॥१७३२।। उज्जाणं च गएहिं तेहिं संलेहणाविहिपरेहिं । अंगीकय अणसणं परलोअसुहप्पयाणखमं ॥१७३३।। विनायमंतिसंबंधेण चकवाणा य सो सचिवो । आणाइओ मुणीणं पुरओ दढरज्जुबद्धंगो ॥१७३४॥ करुणारसकोसेहिं तेहिं मोविओ अहो ! मंती । चक्कवई अंतेउरसहिओ नमिरं च तत्थ गओ ॥१७३५॥ कुणइ सुनंदानाम इत्थीरयणं च रिसिपयपणामं । अलिअफलिसं महेसी सुकुमालं अणुहवेइ तया ॥१७३६॥
१. मेदैः चाण्डालैः ॥ २. ज्योत्स्नामहे-शरत्पूर्णिमाउत्सवे ॥ ३. कर्तुमनसौ भृगुपातम् ॥ ४. सरोषनेत्रः॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170