Book Title: Bhuvanabhanukevalicariya
Author(s): Indahansagani, Ramnikvijay Gani
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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भुषणभाणुकेवलिचरियं
'निम्मलगुणोहपरिमल फुरंत भव्वं गिभसल केलि सुमं । जो सीलसुरहिचंत्रण विलेववासिअसमग्गंगो || ५६२|| थिरयर दमणमूलो जो सुररुक्ख व्व सोहए सुइरं । रिउजलणगणसमुच्चयपणपब्भारआहारो || ५६३ ।। 'निट्ठापत्तसुनिम्मलमइसुअनाणंकुरप्पभवभूमी | जो अयलयपन्नो वसुद्ध सिद्धतधारी अ || ५६४ || विमला गम सुइरमउक्कंठिअचित्ता य सुगुरुपासम्म | नरवइ-अमञ्च-सिट्टिप्पमुहा गच्छंति भत्तीए || ५६५ || तत्तो जाव सुमित्तो वि अ तत्थ गभिस्तर कयावि इमो । इअ ताव 'तव्वइअरो विण्णाओ मोहनरवइणा ||५६६ || रे रे ! गिण्ee गिण्हह 'जंतं तं अन्नहा हया सव्वे | इअ साहंतो मोहाहिवो समुट्ठेइ संरंभा ॥ ५६७ || पेसे मोहनिवई इ " निवारेउमुग्गभडसेणिं ।
विक्ता ने परअणइकंतबलवंता ॥५६८ || एगो आलस्सरिऊ जस्स समो तक्करो परो नत्थि । हरिओ अ धम्मलाहो आगच्छंतो जओ जेण ॥ ५६९|| घरसयणाइ सिणेहो मोहो कि 'किण्हमट्टिआपको | जत्थ 'निमन्नो अप्पं न " म ( णा) गओ कड्रिढउं सक्क ||५७० ॥ किं पि न मुणंति मुणिणो को वा धम्मो इमेसि समणाणं ? | साहूण गुणा के वा ? " महावइरिणी इअ अवन्ना ||५७१|| जाइ-कुलाइअभंदिरअहिव्त्रयामंठिओ वि एस जिओ । पाडिजइ अह जेहि ते अठमया महारिउणो ॥ ५७२ ॥
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काहो जलणु व्व जëतो पज्जालेइ अप्पमवरं वा ।
पीइ घरं च दहिजइ जेणं हाणिगरपढमेण ॥ २७३ ॥
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१२ पंचप्पयारवयणी पमायपंचाणणो बली जेणं ।
" जीअगए छिन्नम्मि अ पडंति धम्मगुणमुत्ताओ ||५७४ ||
संते धणम्मि दाणं न दिजए खज्जए व पिज्जइ वा रक्खावालसमेणं किविणतेणं सया जीओ ॥५७५ ||
१. निर्मलगुणौघपरिमलस्फुरद्भव्याङ्गि भ्रमर केलिसुमम्, सुमं-पुष्पम् ॥ २. निष्ठाप्राप्तसु निर्मलमतिश्रुतज्ञानाङ्कुरुप्रभवभूमिः ॥ ३. विमलागमश्रुतिरसोत्कष्टितचित्ताः ॥ ४ तद्वयतिकरः ॥ ५. यान्तम् - गच्छन्तम् ॥ ६. कथयन् ॥ ७. निवारयितुम् ॥ ८. कृष्णमृत्तिकापङ्कः ।। ९. निमग्नः || १० मना अल्पांशेनापि ॥ ११. महावैरिणी इति अवज्ञा ।। १२. मद्य - विषय - कषाय-निद्रा-विकथेति पञ्चप्रकारवदनः || १३. जीवगजे ॥
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