Book Title: Bhuvanabhanukevalicariya
Author(s): Indahansagani, Ramnikvijay Gani
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text
________________
सिरिइंदहसगणिविरयं
लोहा ताव सचेअणओ किंपि हवह पुणो वि कोधगओ । पेसइ धूअं अइवल्लह 'मप्पसरीरगअभिन्नं ॥१३६०।। मुच्छाभिहाणया सा कुविआ कारेइ पासदेसगया । 'जस्संगोवगरणगाइअमुच्छ बलवई बणिआ ॥१३६१।। तीए गलगहिओ जो पच्छम्मुहओ अ वालिओ संतो। दसमगमोवाणाइअकमेण परिवाडिओ ताव ॥१३६२॥ जो जाव पढमसोवाणगम्मि नीओ समप्पिओ तीए । मिच्छादसणदुट्ठगमंतिवरस्स गसिओ तेण ॥१३६३॥ चलमाणो जो अ सचेअणभूपहिं गहिजए झत्ति । तेहिं कुविएहिं रिउवग्गेहिं पुवपहिएहिं ॥१३६४॥ तकारिअभूरिदुरिअभरो गओ एगकरणपमुहेसु । जो भमिऊणं चढिओ नरगाइसु भूरिसंसारं ॥१३६५।। अह मणुअभूमिमज्झे अस्थि 'महापुरभिहाणयं नयरं । तत्थ परमसावयगो महडिओ नयर सिट्ठिमणी ॥१३६६।। नामेण सुनंदो तस्स भारिआ स्वधारिणी धन्ना । संसारिजीओ जाओ तप्पुत्तो पुंडरीगक्खो ॥१३६७॥ जस्स अइसाइणी पाडिवया जाया तओ पुणो जेण । अप्पेण वि कालेणं कलाओ पढिआउ पोढाओ ॥१३६८॥ थोवं एअं अज्झेअव्वं ति 'असंतुसंतओ संतो। पुच्छइ जो मुणिपासे कलाण किर वित्थरो कुत्थ ? ॥१३६९॥ सव्वाण कलाणं पुन्वेसु समत्थि बहुवित्थरो भद्द ! । जेणुत्तं कइ पुग्याणि ताणि हुंति ? मुणिणा भणिअं ॥१३७०।। पुच्छसु तुमं गुरुवरे तओ अ ते जेण पुच्छिआ तेहिं । पुव्वगओ वित्थारो कहिओ सब्बो वि जस्स तओ ॥१३७२।। पुव्वाणं अज्झयणे जस्स मणं जायमित्थ अञ्चतं । जंपइ जो गुरुराया पाढह पुव्वाणि मे तुम्हे ॥१३७२॥ कायव्यो उ पसाओ तुम्हेहिं एस ताव सुगुरूहि ।। कहि पढंति मुणिणो पुवाई नेव सजणा ॥१३७३॥
१. आत्मशरीरकाभिन्नाम् ॥ २. यस्य अङ्गोपकरणकादिकमूर्जाम् बलवती वनिता ॥ ३. भवभावनायो ब्रह्मपुरम् इति नामं नगरमस्ति ॥ ४. प्रतिपत् बुद्धिः ॥ ५. असंतुष्यन् ॥ ६. चतुर्दशपूर्वेषु ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170