Book Title: Bhuvanabhanukevalicariya
Author(s): Indahansagani, Ramnikvijay Gani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 117
________________ सिरिइंदहंसगणिविरइयं गुरुराय ! जया सुत्तत्थं चिंते मि अहमयलचित्तो उ । सव्वेसि तया सुत्तो एसो एवं भमो हवइ ॥१४१५।। समणो थूलमुसावाइ त्ति विरत्ता उ सव्वहा गुरुणो । मुणिणो वि तहा जंपइ पेरिजंतो असंबद्धं ॥१४१६।। दोसं गच्छइ समणो जो सव्वेहिं उविक्खिओ तेण । पासे परिवारो मोहपेरिओ आगओ जस्स ॥१४१७।। तत्तो दूरीभूओ सयागमो सव्वहा जओ विमुहो । नट्ठो पुण सब्बोहो गओ अ चारित्तधम्मो वि ॥१४१८।। गच्छह पढमं चिअ जाव सव्वविरई सुदंसणअमच्चो । सो वि पणट्ठो मिच्छत्तमंतिओ आगओ झत्ति ॥१४१९।। एवं सव्वेहि वि मिलिऊणं पज्जंतकालए जो अ । निद्दाघुरुधुरुगे किर खित्तो मरणेण संहरिओ ॥१४२०॥ भमिओ निगोअमझे तहा य एगिदिएसु गंतूणं । संसारे जो माणुसजम्मो हा! हारिओ लद्धो ॥१४२१।। अह चित्तवित्तिनामाडवीइ सुविवेगतुंगगिरिसिंगे । अपमत्तनामकूडे जिणिदपुरनामयं नयरं ॥१४२२॥ तत्थ विगयउच्छाहा मिलिआ सव्वे वि ते निराणंदा । चारित्तधम्मनरवइपमुहा एगत्थ उवविठ्ठा ॥१४२३।। जंपति ताव एए मिहो अहो! तुम्ह पिक्खह सुदक्खा । किं इत्थ किजए ? मोहनिवस्स सहायगा बहुणो ॥१४२४॥ उच्छिदिते उ अभव्व-दूरभव्वाभिहाणया एए । अक्खलिअ भममाणा मूलाओ पक्खमम्हाणं ॥१४२५।। अम्हेहिं तु सहाओ एगो लद्धो इमो धुवं सो वि । अम्हाणं मिलिओ किर बहुलेणं ताव कालेणं ॥१४२६।। आरोविजइ एसो अम्हेहिं जाव गुरुगुणेसु जिओ । अम्हाण सहायत्तं पडिवजइ सो पुणो किं पि ॥१४२७॥ ताव इमस्स स को वि 'विवजासो हवइ जेण जो मिलइ । तेसिं मोहाइरिऊण चिअ विडं बिजए तेहिं ।।१४२८।। एसो तहेव दुहिओ वयं तु एअस्स सुहसमुप्पायं । काउं उवक्कमामो मूढो जो मुणइ नेव इमं ॥१४२९॥ 1. विपर्यासः॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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