Book Title: Bhuvanabhanukevalicariya
Author(s): Indahansagani, Ramnikvijay Gani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 122
________________ भुवणभाणुकेबलिचरियं सत्तरससायरोवमआउधरो देवरायसमरिद्धी । जो संजाओ देवो महासुहंभोनिहिनिमन्नो ॥१४८८॥ तत्थ वि तित्थगराणं जेणं समवसरणाणि किज्जति । पुहुवीए अवयरिउं पमोअपूरिअसरीरेण ।।१४८९।। सिरिरिसह-वद्धमाणग-चंदाणण-वारिसेणनामेहिं । जिणपडिमाओ नंदीसराइतित्थेसु वंदइ जो ॥१४९०॥ अहिआमहूसवविहाणओ पोसिओ उ पुण्णुदओ । जेणं दिव्या भोगा भुत्ता धम्मपहुपसाया ॥३४९१॥ चइउं सुरलोगाओ पुव्वविदेहम्मि जो सुओ जाओ । कमलायरनयरे सिरिचंदनिवपिआइ कमलाए ॥१४९२॥ नामेण भाणुकुमरी सुरसमरूवो कलाकलावनिही । वड्डइ चंदु व्व सयलभुवणजणाणंददाणपरो ॥१४९३।। तत्थ य सब्बोहुजलदंसणसहिओ उ बालकालाओ। धम्म कुणमाणो जो पुण्णोदयपोसणं जणइ ॥१४९४॥ अह राया सुरलोगं गओ तओ भाणुनामकुमरो अ । रज्जं करेइ भुंजइ भोगे दिव्वे 'ससोहग्गो ॥१४९५।। जो पालिऊण साययधम्म सम्मं सुअं ठविअ रज्जे । गुरुपासम्मि वयं गहइ तहेव महाविभूईए ॥१४९६।। अइपरिचिओ कओ जेणं समजेणं सयागमो एसो । चारितधम्मसिन्नाणुगओ एगग्गचित्तेणं ॥१४९७॥ जिअमोहबलो कयपुण्णोदयपोसो पवालिऊण वयं । गहिआणसणो जो नवमग्गेवेअगसुरो जाओ ॥१४९८॥ जो एगतीससायरसमजीविअधारगो सुरो होउ । उप्पन्नो पुव्वमहाविदेहनामम्मि खित्तम्मि ॥१४९९॥ भूमंडलमंडणपउमकंडनयराहिनायगो राया । सीमंतगाभिहाणो सामंतगसेविओ सययं ॥१५००॥ तस्स सुओ संजाओ गुणवंतो इंददत्तनामो जो । तत्थ वि नरिंदभोगे भुत्तूणं संजमो गहिओ ॥१५०१॥ जो मोहबलक्खयकारगो पुणो पुण्णुदयसुपोसगरो । पुवविहिविहिअअणसणसमाहिमंतो कुणइ कालं ॥१५०२॥ १. सौभाग्यः ॥ २. प्रपाल्य व्रतम् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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