Book Title: Bhuvanabhanukevalicariya
Author(s): Indahansagani, Ramnikvijay Gani
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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अह सब्बोहसयागमपयडीकयगुणवरेसु एस जिओ । आरोहंतो 'सक्किजए न केणावि पाडेउं ॥ १४४५ ॥
सिरिदहंसगणिविरइयं
इत्थ भवम्मि मए विअरिओ सहाओ उ पुण्णुदयनामो । एअस्स चिट्ठए तं पोसिस्लइ जो सयाकालं ||१४४६ || न य पावोदयपोसं करिस्लइ कयावि जो तओ जीओ । मोहाइरिऊणं जुग्गो न भविस्सइ अहो ! ताव || १४४७ || जाव इमेण जिएणं पविसिजइ मुत्तिनामनयरीए । एअं सुणिअ हरिसिआ समुट्टिआ दंसणपहा || १४४८ || बंधंति तोरणाइं जिनिंदनयरम्मि तेण कणगकुंभे । पउमपिहाणपहाणे मोआवंति गिबारे || १४४९ || काराविज्जइ आवणसोहा सव्वत्थ वंसअग्गेसु । जेहिं अवलंबिज्जंति रत्तसोहंतवत्थाई ॥१४५० ॥ दावंति मिगमय सहिअसिरिखंड सलिलछडाउ रायपहे । कणगरयणदाणाई तहा य ते अभयदाणाई || १४५१ ॥
वाइज्जते तुरिआई कारिज्जति तेहिं नट्टाई । पइदिणमिमो अ सीहरहो नमइ जिणे अ आजम्मं ||१४५२ || जो कुणइ गुरुपणामं गच्छइ पिउणा समं जिणगिहेसु । तोसं पावइ मुणिदंसणेण सुणेइ तव्वयणं || १४५३ ||
मुणिदिजमाणअसणाइअदसणओ उवेइ हरिसं जो । पदिणमिअ पुण्णोदयपोसो जस्त गयदोसो अ || १४५४ || तक्कयसाहज्जेणं जेण पढिआउ अप्पकालेणं । सयलाओ सुकलाओ तओ अ तरुणत्तणं पत्तो ॥ १४५५ || जस्स य जायं रूवं वम्महअइसाइ सुंदरत्तेणं । ललिअविलासो सुरवरलीलासरिसो हवइ एसो || १४५६ || न रमइ विसपसु मणं जस्स मयच्छीकहा पिआ नेत्र | तपाणिग्गहणकरणमिच्छइ मणसा वि जो नेव || १४५७||
१. शक्यते ॥ २. तत्कृतसाहाय्येन ॥
सेवइ समणे तेसिं पासम्मि सुणेइ धम्मसत्थाणि । जो भावेइ भवसरूवं तत्तो हवइ उ विरत्तो || १४५८ || अभिकंखर मुक्खसुहं संसारविलक्खणं च जो दक्खो । चनाणधरो गुणनिहिनामो सुगुरू तहिं पत्तो ॥ १४५९ ।।
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