Book Title: Bhuvanabhanukevalicariya
Author(s): Indahansagani, Ramnikvijay Gani
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिइंदहंसगणिविरइयं
जस्स सरीरे तीए आलस्सं पुव्वमेव आणीअं । 'तव्वसगो जो समणो न परावट्टेइ सुत्ताई || १३८७ || पुव्वाणं अवरेसिं सत्थाणऽत्थं न चिंतए जो य । एवं ति चउरवासरगमणे मुणिणो वयंति परे ||१३८८ || जई निरवज्जा विज्जा पढिआ गुणणेण ता थिरीकुणसु । इअ पेरिऊण उववेसिओ बलेण गुणणस्स मुणी || १३८९ || अह पेसिओ पमीलाए सेसो परिगरो निओ सoat | तेणं गहिओ समणो भूआविट्ठव्व भूओ जो ॥१३९० ।। जंभाहिं पिट्टं जो मोडइ 'उड्डीकरेइ बाहुजुगं । भंजइ अंगुलिआओ पयाइअंगाणि विक्खिवइ || १३९१ || इअ विविपयारेहिं "उंघा नामेइ जस्स ताव मुहं । भामेर अहो पुरओ अ पिट्ठओ पासओ वीसुं ।। १३९२ ।। Tourteen कारिज्जतम्मि थविरसमणेहिं । न वि पुंडरीअमुणिणो विणिग्गयं अक्खरं मुहओ || १३९३||
अह रत्तीए अकंतो निद्दाए दढं समावडइ । संथार गाइविरहम्मि जत्थ तत्थ व पपसे जो ॥१३९४ || जो कहखंडगं पिव निद्दाए विगयचेअणीभूओ । सुवर जाव दिणमुहं विसंठुलकलेवरावयवो ॥। १३९५ ।।
पडिकमणगवेलाए उजागरी ठिजए दुहेणं जो । इअ अन्नदिणे वि थविरसमणेहि ठाविओ गुणिउ ॥१३९६ ||
अह उंघाप जो पाडिओ सिरं कुष्पराणि जाणूणि । जुगवं भग्गाई भूमीआवारण तक्कालं ।। १३९७
एवं च जाव किंचि वि न जंपर ताव थविर साहुजणो । मोणमवलंबिऊणं ठिओ गुणेइ अ सयं सुत्तं ॥ १३९८ ॥
अहं निद्दा ती पडिक्कमणकाले ।
जो कारिओ अ नहं अहो ! अपुव्त्रं नडीइ व्व ॥१३९९ ॥ aणविआरा विविहा लोअणभंगा तहा अणेगविहा । 'पयकरविन्नासो विअ अणेरिसो जस्स नट्टविही || १४०० ||
१. तद्वरागः ॥ २. शास्त्राणाम् ॥ ३. प्रमीलया - निद्रया ॥ ४. भूताविष्ट इव ॥ ५. ऊर्वीकरोति ॥ ६. पदादिअङ्गानि विक्षिपति ॥ ७ निद्रा ॥ ८. काष्ठखण्डकम् ॥ ९ पदकरविन्यासः ॥
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