Book Title: Bhuvanabhanukevalicariya
Author(s): Indahansagani, Ramnikvijay Gani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 111
________________ सिरिइंदहंसगणिविरइयं तत्थ अमञ्चवरी परमसावओ अत्थि 'अत्थमंतो अ । तस्स सुओ जो जाओ पिउकयचित्तमइअभिहाणो ॥१३३॥ माया-पिउणो "पिउवइगेहातिहिणो अ जाव संजाया । ससुअं कुडुंबभारे ठवेइ संविम्गचित्तो जो ॥१३३२॥ सुगुरूण पासदेसे गंतूण वयं गहेन्जए जेण ।। पालिजइ पुव्वभणिअविहिणा हयमोहसिन्नेणं ॥१३३३।। पजतम्मि विसयसुहसीलत्तपमायसंगवसओ जो । संजमविराहगो उप्पन्नो सोहम्मसुरलोगे ॥१३३।। तत्थ वि पल्लोबमपमिअजीविअधरो सुरो अ संजाओ । हीणडिओ तओ वि अ चविओ भमिओ भवं जीवो ॥१३३५।। एगय कंचणपुरनयरे खेमकरनरेसरसुओ जो। जाओ अ विजयसेणो नामेण सयलकलावंतो ॥१३३६॥ तत्थ वि सग्गुरुपासे धम्म सुणिऊण सयणवग्गं च । मुत्तूण जेण जणिओ करग्गहो वयसिरिकणीए ||१३३७।। सब्बोहसयागमपमुहा पमुइअमाणसा तहेव इमे । मुणिणो जस्स सगासे ठिआ विसालबलकलिआ य ॥१३३८।। मोहबलेण समं पारद्धो जेणं सुदारुणो अ रणो । जस्स य कयबहुसंगो सयागमो परिचिईभूओ ||१३३९।। सब्बोहो वि थिरतमो 'जस्संगमलंकिअं सयाकालं । अयलतरअप्पमाणं कणगाहरणगेण[......]जहा ॥१३४०॥ संतोसजुओ जो अप्पमत्तगुणठाणलक्खणं झत्ति । आरुहिओ सत्तमयं सिद्धिमहासोहसोवाणं ॥१३४१।। तत्थ य जेणं "कम्माणुगूलयाए कहंचि किर लद्धो । उवसमसेणिमहावइरदंडओ अइपयंडतमो ॥१३४२।। जो कोह-माण-माया-लोहे आहणिअ मत्थए तेण । पाडेइ ता अणंताणुबंधिणोऽणाइरिउभूए ॥१३४३॥ भ[स्स]पच्छाइअअग्गिकणसरिच्छा जेण ते कया तुच्छा । मिच्छादसणमंती पयड निद्धाडिओ मुर्णिणा ॥१३४४|| १. अर्थवान्-ऋद्धिमान् ॥ २. यमगृहातिथी परलोकवासिनावित्यर्थः ॥ ३. व्रतश्रीकन्यायाः ॥ ४. यस्याङ्गम् अलङकृतम् सदाकालम् अचलतर-अप्रमाणम् कनकाभरणकेन यथा ॥ ५. कर्मानुकूलतया ॥ ६. भस्मप्रच्छादिताग्निकणसदृशाः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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