Book Title: Bhuvanabhanukevalicariya
Author(s): Indahansagani, Ramnikvijay Gani
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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भुवणभाणुकेवलिचरियं
'दुग्गमवट्ठेभिअ जो लुंटेइ धणंजयाभिहनिवस्स । पतवट्टिदे से समंतओ * निश्च मच्चुग्गी ॥ ९४५ ॥
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तम्मि समयम्मि देसो उवद्दुओ को वि तेण अब्भहिअं । तस्सुवरिं धावेइ अ कुबेरकुमरो सबलसेणो ॥ ९४६ ॥ कुमरेणं कहमत्रि सो निग्गहिओ पल्लिआवई विसमो । दुग्गो वि जेण सवसीकओ जओ 'मेइणी अमिणो ||९४७ || अह जो गिज्जर गीपसु पढिज्जइ पाढपिहुपबंधेसु । favorite व सुणिजए सिलाहिज्जइ जणेहिं ॥ ९४८ ॥
ततो द्वावसरी पिअरं अणुजाणिऊण जप्पासे । आगच्छर अभिमणाभिहाणओ अग्गिबंधू अ || ९४९||
दोसगईदतणूओं तहा अणंताणुबंधिओ सो अ । पव्वयरायावरनामओ अ तस्सन्निहाणम्मि || ९५०|| घट्ट[थड्ढ] सरीरो उड्ढारोविअनयणो न माइ तुच्छउरो । जो "निअसोअरिअमउक्करिसा देहे तिलोप वि ।। ९५१|| भासह अ जो सयलजणसमक्खमम्हाण पुव्वजारहिं । रंडासहोअरेहिं पुराकथं देसरजमिणं ॥ ९५२ ॥
जं एस वराओ नेव जिओ जेहिं धणंजओ राया । स पुणो वणिओ नेओ इमेण किं चल्लए लोप ॥ ९५३ ॥ जर एअस्साssवासे भावी अम्हाण सेव अवयारी । तं अज्ज सचरडेणं बंधि गहिओ भविस्स्तो ||९५४ || भक्खयजणा य छंदाणुषट्टिणी ते पुणो इअ वयंति । कुमरेण सोहणमिणं जहट्टिअं चिअ समाइट्ठ ||९६५ || देवाणमवि असज्झो एसो चरडो तुमं विणा को वि । देव ! अवरो समत्थो न दीसप जेउमित्थ इमं ||९९६ || अन्नह किमिति दिणाणि सम्मुहमिमस्स केण वि निवेणं । अवलोइडं न सकिअं इअ जो उप्पासिओ तेहिं ॥९५७|| गाढं कट्ठीभूओ सठाणं जो गओ तओ कुमरो । पिडणो पणाममवि जो काउं पत्तो तया नेव ||९५८|| जेण न कओ पणामो जणणीय नेव बंदर देवे । गुरुणो न नमइ वुड्ढे नालावेर विउरे (वा) जो ॥९६९॥
१. दुर्गमवष्टभ्य ॥ २. नित्यमत्युग्रः ॥ ३. पाठपृथुप्रबन्धेषु ॥ ४. निजशौर्यमदोत्कर्षात् (निजसोदर्यमदोत्कर्षांत ) ५. उत्प्रासितः ॥
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