Book Title: Bhuvanabhanukevalicariya
Author(s): Indahansagani, Ramnikvijay Gani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 100
________________ भुवणभाणुकेलिचरियं एवं भवेसु केसु वि वयमेगेगं च कत्थ वि दुवे वि । कत्थ वि तिण्णि अ कत्थ वि चत्तारि वयाणि गहियाणि ॥११७५॥ कत्थ वि वयाणि जेणं 'आइञ्चपमाणयाणि एआणि । पडिवन्नाणि अ चत्ताणि महामोहाइअबलेणं ॥११७६।। अह अन्नया य कुंडिणिनयरीए परमसावओ ताव । सत्थाहिवो सुभद्दो पइदिणवटुंतबहुभद्दो ॥११७७।। तस्स सुआ संजाया रोहिणिनामेण जस्स जीओ अ। जा संपन्ना सुस्साविया विगयअन्नदेवा य ॥११७८॥ जा जिणदेवे बंदइ भत्तिभरणं गुरूण पासम्मि । धम्मं च सुणइ सम्म सेवइ समणीजणं च सया ११७९।। जा परिणीआ गिहजामाउअवणिएण विमलनामेणं । पिउणो अ अवटुंभेण कुणइ धम्मं विसिटुं जा ॥१९८०।। जीए पढिओऽहिओ लक्खो सज्झायस्स सेमुसीबलओ । निअनामं पिव जाणइ कम्मग्गंथाइसत्थाई ॥११८॥ सावयषयाणि बारस जीए गुरुअंतिए पवनाणि । ताणि निरइआराई जा पालेइ अ सयाकालं ॥११८२।। अह अन्नया य 'अटाणसहुवविडेण मोहचरडेण । चिंताउरचित्तेणं अवलोइज्जति 'कउहाओ ॥११८३। सामंतमंतिपमुहेहि भणिों देवओ समादिसउ । अह मोहनिवेणुत्तं अम्हाण "विवक्खवग्गम्मि ॥१९८४।। जा रोहिणी निरिक्खइ पयंडबलधारिणी कहमिआणि? । तेहि 'विहसिउं उत्तं सव्वो तावुकडो देव! ॥१९८५।। तुम्हाणं माणुसमित्तगोअरे जाव आगओ नेव । मोहनरिंदो जंपइ पेसिजउ तत्थ को वि तओ ॥११८६॥ पच्छामुहिं निवर्टेड जो इमं मिगमुहिं अओ जाव । इच्छइ कहिउं एगं पि ताव विगहा कहेइ सयं ॥१९८७॥ आएसो एसो मह सामिअ! दिजाउ मए बलं तीए । ताव षिलोइजइ किर सव्वेहिं सा गया भणिआ ॥११८८॥ इत्थी-पुरिसाण कहा भत्तकहा "देसगोअरा य कहा। रायकहा इ. विगहा करेह रूवाणि चत्तारि ॥११८९॥ १. आदित्यप्रमाणकानि द्वादशसङ्खधानीत्यर्थः । २. शेमुषीवलतः बुद्धिवलतः॥ ३. आस्थानसभोपविष्टेन आस्थानोपविष्टेनेत्यर्थः ॥ ४. ककुभः दिशः इत्यर्थः॥ ५. विपक्षवर्गे ॥ ६. विहस्य ॥ ७. देशगोचरा च कथा ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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