Book Title: Bhuvanabhanukevalicariya
Author(s): Indahansagani, Ramnikvijay Gani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 108
________________ भुषणभाणुकेवलिचरियं सुणसु तुमं राय ! अवहिअमाणसो भूवई तओ भणइ । एसो अहं अवहिओ कयप्पसाया कहंतु जिणा ॥१२८७।। भगवं तो भणइ तओ पत्थिव! अत्थि नरखित्तमज्झम्मि । इंदपुरं नाम पुरं सिरीइ इंदपुरसंकासं ॥१२८८।। राओ समीरणो नाम तत्थ जाया जयंतिआ तस्स । जेहिं गहिओ इव अवयारो 'सर-सुर-रइ-सुरीणं ॥१२८९॥ एगय आणीओ सो संसारिजिओ अ तेसि गेहम्मि । कम्ममहानरवइणा तणुअत्तेणं पमन्नेणं ॥१२९०॥ जणओ जणेइ अरविंद त्ति सुअस्स 'महपुव्वमभिहाणं । पढिआउ जेण य कलाउ विमलजसकुसुमवल्लीओ ॥१२९१।। जुव्वणवयं च पत्तो गुणपयडीभावभायणं पुत्तो। मुणिपरि[वरि]ओ सुगुरू कम्मनिवेणं समाणीओ ॥१२९२।। जो रायवाडिआए नयराओ निग्गओ वणम्मि गओ । सुगुरुं निरिक्खिऊणं पणमइ आणंदपूरेणं ॥१२९३॥ तत्थ य उवविवो जो कम्ममहंतनिधई समप्पेइ । जस्स अइभासुरं सुहअज्यवसायरूवमसिं ॥१२९४।। संखिज्जसागरोवमठिइरूवं खंडिअं च तणुखंडं । मोहाइमहारीणं जेणं तेण करवालेणं ॥१२९५॥ सम्मईसण-चारित्तधम्मउवएसदायगेण तओ। सत्वविर कन्नाए महागुणा वण्णिआ गुरुणा ||१२९६।। 'तत्तिवणुरागो जो जणणी-जणगाइसंगम चत्ता । सुगुरुसमप्पिअवेसो परिणेइ सयलविरइकन्नं ॥१२९७।। आलोइउं च लोआ परमविभूईइ गहिअदिक्खं जं । पभणंति एस धन्नो मन्नो देवाण वि मुणिंदो ॥१२९८॥ चारित्तधम्मभूवइसिन्नं सव्वमवि हरिसि एअं । जस्संतिए ठिओ सब्बोहो थिरदसणो जाओ ॥१२९९॥ जाणअसयागमपरिचय विहीसु सिक्खिअकिआकलावो अ । उवसममंडणमंडिअदेहो सोहइ महेसी जो ॥१३००॥ मद्दवमुद्दागाही अजवलाही लसंतसंतोसो।। जो तवसोसिअगत्तो संजमलच्छीनिहिअचित्तो ॥१३०१॥ १. स्मरसुर-रतिसुयोंः ॥ २. तनुजत्वेन-पुत्रतया ॥ ३. महपूर्वम्-उत्सवपूर्वम् ॥ ४. शरीरसण्डम् ॥ ५. ततीव्रानुरागः ॥ ६. त्यक्त्वा ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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