Book Title: Bhuvanabhanukevalicariya
Author(s): Indahansagani, Ramnikvijay Gani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 81
________________ ६४ Jain Education International forest दहं सगणिविरइयं feeds को fs किंचि वि जइ तस्सुवरिं च रूप अहिअं । बहुअरमेसा दोसग्गिणा जलइ ताव अहरतं ॥ ९०१ || सम्म सणमंती सरो परिहरेइ जाव तं भज्जं । मिच्छत्तम हटाइ अ सेसमसेस पि मोहबलं ||९०२ || अन्य को वि महटिअसिट्ठी अ समागओ विमल गेहे । afras विमलपासे कज्जत्थं तत्थ मो सिट्ठी ॥९०३॥ विटा जिणसिरिभज्जा अक्कोसंती बहुं च कयमणं । दोसग्गिणा जयंती तओ पुणां सिट्टिणा तेण ॥ ९०४ || सो भइ महाभागे ! 'मुहा तुभं खिजसे कहं इत्थ ? | जम्हा किसके गिहमिणं गमिस्सइ अ का लच्छी || ९०५ ॥ कइवय दिपज्जते न तुमं नहिं न वा इमा लच्छी । तुझ बहू पुण एसा सुहभावा चेव पडिभाइ ॥ ९०६ ॥ ता किं निरत्थयं संताविस्सउ सा तर ? अ कल्लुम्मि । आणि गिहाणि बहुजणवसगाणि अ भविस्संति ॥ ९०७ ॥ इअ तेणुते तम्म वि महापओसं वहेइ सा रुहा । केवल ममस्त पुरिसस्स किं पि पहवेइ नेव पुणो ||९०८|| संकेअं काऊणं ममोवरि को वि एस आणीओ । रे मायाषिणि ! दुटठे ! सुभासिओ पंडिओ तुमए ॥ ९०९ ॥ इचार पमाणी 'सागाइच्छेअकारिणि तिक्खं । गहिऊण लोहपालिं वहुवरिं धाविआ एसा ॥ ९९० ॥ दुट्ठसहावा एसा अह पाडित्ता य धणसिरिं झत्ति । हिअरि च निसन्ना सस् तीए "जिहंसाए ॥ ९९९ ॥ हाहारवं कुणतो पहाविओ परिअणो अ सब्वो वि । तं पि इमा सपओसा पहरिउमारंभए दुट्ठा ॥१.१२|| लिठु-लउड - पहि-पमुहेहि आरंभिअं पहरिडं तं । तेणावि परिक्षणेणं जाव वह मारिआ तीए ॥ ९१३|| सा मारिआ परिअणेणाविं अ एअमसमंजसं घोरं । दट्ठूण विमलसठी कुटुंबसहिओ अ पव्वइओ ॥ ९१४ || १. मुधा ॥ २. यस्मात् किंसत्कं गृहमिदम् ॥ सत्कं कस्न गृहमिदं ? यास्यति सह केन चेयमपि लक्ष्मी: ? । कतिपयदिनपर्यन्ते न लं न गृहं न चेयं श्रीः ॥१॥ भ. भा. पृ. ३१७ ॥ ३. शाकदिच्छेदकारिणीम् ॥ ४. जिघांसया ॥ ५. सप्रद्वेषा ॥ ६ लेष्टुटगुटपाणिप्रमुखैः ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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