Book Title: Bhuvanabhanukevalicariya
Author(s): Indahansagani, Ramnikvijay Gani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 35
________________ १८ Jain Education International सरिइंदहंसगणिविरइयं वाससहस्साणि इमो संखिजाई सहाविओ दुक्खं । are face पकुविअचित्तेहिं दुट्ठधिट्ठेहिं ||२३८५ || पुष्वृत्तनिगांआइसु इगिंदिपसु अ परम्मुहो खित्तां । तेसु वि धरिओ सो संखिज्जे पुग्गलपरावट्टे ||२३६|| 'पुणरायाओ विगलिंदिएस संखिज्जकालयं धरिडं एगिदिए खित्तो असंखपुग्गलपरावट्टे ||२३७|| पर्गिदिअ - विगलिदिअगयागपहिं अनंतपुग्गलए । रुद्धो तेहिं एसो पवीलिओ दुक्खलक्खेहिं ||२३८|| कम्मनियो सम्मुच्छयपंचिदियपसु तं तओ इ । अट्ठभवेसु निरोहो अ पुव्वकोडीपुहुत्तं जा ॥२३९॥ एगि दिअ-विगलिंदिअ - सम्मुच्छपणिं दिएसु गमणेहिं । पुणरवि खलणं च कयं अणतपुग्गलपरावट्टे ||२४०|| अह नीओ कम्मेणं गब्भयपंचिदिएसु तिरिएसु । तत्थ वि अट्ठभवेसुं सपुव्वकोडीपुहत्तं जा ॥ २४९ ॥ एगिंदियाइ - गब्भयपणिदिअतिरिअगयागएहिं सो । पुणरवि धरिओ तेहिं अणतपुग्गलपरावट्टे || २४२|| मच्छाइभवाऽऽणीअं तं दहुंचितए अ मोहाई । एसो पुरओ तं चालतो दंसेइ रिउपक्खं ॥ २४३ ॥ इअ कुद्धेहिं तेहिं जीवाघायम्मि पेरिओ निचं । कयमंसभक्खणी पुण पावो नरपसु खित्तो सो ॥ २४४ ॥ तत्थ असंखं कालं अणुहूअं दुक्खमुक्कडं तेण । अन्य कम्मनिवेणं "सकुंतपमुहेसु सो मुक्का ||२४५ || तत्तो मोहाईहिं एसो एगिंदिआइ- नरपसु । कसिओ गयागपहिं अनंतपुग्गपट्टे || २४६॥ आइ कम्मनिवई सम्मुच्छयमाणवेसु तं तत्थ । अट्ठसु भवेसु तेहिं 'अंतमुहुत्ते अड य धरिओ ||२४७|| एर्गिदिआइसु तओ गयागपहिं अणंतपुग्गलए । खिवइ अ अणज्जदेसयगब्भनरेसु किर कम्मनियो || २४८|| खुहिओ मोहमहीसो तस्स य सव्वे वि " सेणिआऽऽवइआ । एपण अहो ! पहा अम्हे जं दूरमाणीओ || २४९ || १. पुनरायातः ॥ २. उत्कटम् ॥ ३. पक्षिप्रमुखेषु ॥ ४. अन्तर्मुहूर्त्तानि अष्ट च धृतः ॥ ५. अनार्यदेशकगनरेषु ॥ ६. क्षुभितः ॥ ७. सैनिका आपतिताः सैनिका आगता इत्यर्थः ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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