Book Title: Bhuvanabhanukevalicariya
Author(s): Indahansagani, Ramnikvijay Gani
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिइंदहंसगणिविरइयं
दुहिअस्स जस्स पिठे दुट्ठा रोगाऽऽवया 'उवेइ भिसं । दड्ढोवरि फोडयपडणसमाणा अइपमाणा य ॥४६॥ तीए अणुभावेणं 'जररत्तिचरेण सव्वहा गसिओ । सिरबाहा-सूलाइअरोगाणं दत्तठाणो जो ॥४६२॥ तिण्हावसंगओ जो वाणिजाई करेइ बहुआई । अज्जेइ उवक्कमिउं अणेगवारे धणं किंचि ॥४६३॥ कत्थ वि किंतु निवेहिं गहिअं कत्थ वि पुणऽग्गिणा दड्ढं । कत्थ वि मुसिअं तकरनिअरेहिं तं धणं जस्स ॥४६॥ . इअ जो अणेगदेसेसु 'अडतो "धाउवायमातणइ । सिद्धरसो अ हरिजइ *वंतर-रतिचराईहिं ॥४६॥ कत्थ वि अ खन्नवायं करेइ जो वंतराइदेवेहिं । निहणिजइ भक्खिजिइ "विञ्छिअ-सप्पाइएहिं पि ॥४६६।। इअ पञ्चहं महंताउ वेअणाने सहंतओ जो उ । निम्विन्नमणो वि अ देस-दारचाएण तिव्वदुहो ॥४६७।। जो गाम-नगरपमुहट्ठाणेसु चलंतओ सुणइ किं पि । 'विजामढम्मि पदि भणड तहि धम्मसत्थविऊ ॥४६८॥ धण-कणग-सयण-जुव्वणपमुहा भावा "विणस्सरसहावा । धम्मो महंतआवयताणपरो सरणमत्थि तहिं ॥४६९॥ गाहं सुणिउं चिंतइ जो जस्सऽग्गे कहिजए सदुहं । सो एवमेव भासइ न तए पुव्वं कओ धम्मो ||४७०॥ जीवाणमकयधम्माणमावयाओ सया वि "पवडंति । तम्हा धम्मो सरणं संसारे दुहभरागारे ॥४७१।। इत्थंतरम्मि चिंतइ मिच्छादसणपिया कुदिछी अ । अन्जाऽऽगओ अवसरी अम्मो ! मज्झ चिरकालेणं ॥४७२॥ पत्तम्मि इत्थ "वेरग्गनामरिउमाणुसस्स य पवेसो । दीसइ तं जइ सम्मसणधूआ उवेइ इमा ॥४७३॥ सा अम्ह वेरिणी आगच्छंती चिंतिअत्थनासगरी । इअ पेसिआ इमीए निअधूआ धम्मबुद्धि त्ति ॥४७॥
१. उपैति ॥ २. ज्वररात्रिचरेण-ज्वरराक्षसेनेत्यर्थः ॥ ३. अटन् ॥ ४. धातुवादमातनोति ॥ ५. व्यन्तररात्रिचरादिभिः॥ ६. खन्यवादम् ॥ ७. वृश्चिक-सादिकैः ॥ ८. प्रत्यहम् ॥ ९. विद्यामठे ॥ १०. धर्मशास्त्रविद् ।। ११. विनश्वरस्वभावाः ।। १२. महाऽऽपत्राणपरः ॥ १३. प्रपतन्ति ।। १४. वैराग्यनामरिपुमानुषस्य ।
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