Book Title: Bhuvanabhanukevalicariya
Author(s): Indahansagani, Ramnikvijay Gani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 41
________________ सिरिइंदहंसगणिविरइयं पंचमए छटे वा दिणम्मि सागं च पयइ जो गेहे । पावासुओ न य रिणी तस्स दुआरम्मि मोएड् ॥३२०।। पूरिअजक्खसमस्सा चतुरो वि अ पंडवा जलं गहिउँ । निअबंधवस्स धरणीधवस्स तित्तिं स्याबिंति ॥३२॥ पुणरवि पत्तं रज्जं भोत्तुं मोतुं च पंच भवभीआ । पंडुसुआ संजमसिरिवरिआ सर्तुजए सिद्धा ॥३२२।। उक्तं चकयजिणपडिमुद्धारा इ पंडवा जत्थ वीसको डिजुआ। मुत्तिनिलयम्मि पत्ता सिरि सतुजयमहातित्थं ॥३२३॥ संसारम्मि असारे सारं सिरिविमलसेलतित्थाइ । तत्थ य जत्ताइसुकयकरणं जीवाण सारमिणं ॥३२४॥ इअ जक्खचउसमस्सापूरणसंसइआओ मरणाओ। मुच्चइ न कोइ लोओ दुहजलही ही ! भवो एसो ॥३२॥ इतश्चमीओ संसारिजिओ कणगपुरनिवासिअमरसिटिगिहै । तुम्ह सहोअरपणं नंदागभम्मि खित्तो अ ॥३२६॥ जाया मासा 'रिउणो तत्थ वसंतस्स तस्स निअरिउणो । तो मुणिअनिवमणाऽहं मरणसहाया गया तत्थ ॥३२७।। संहरिओ तज्जणओ जाए तम्मि जणणी वि सेसो वि । 'तग्गिहमाणुसवग्गो तओ जिओ सो वि सुहडेण ॥३२८ लोए तकुलनामं 'निग्गमिअमिमेण मरणवीरेण । चिट्ठिस्सइ एगिदिअपमुहेसु इमो अ भममाणो ॥३२९॥ तम्हा अम्हेहि मिच्छादसणवक्कसवणओ हसि। अह सहरिसमवलोअइ वसीकयजओ अ मोहनिवो ॥३३०॥ तह 'अग्गहनिअराभिहकुञ्च च परामरिसिअ सकरेण । मोहनिवेणुत्तमहो! पासह मह पंडुआण बलं ॥३३१।। भणइ तओ मरणभडो पयर्ड मा एवमादिसउ सामी। पहुणो एस पहावो सुहडाणं जं जओ समरे ॥३३२॥ वाणराणं तु ' साहासु गंतुं होई परक्कमो । जं तेहिं जलही तिण्णो तं तेअं रामसंभवं ॥३३३॥ १. ऋतवः ॥ २. तद्गृहमानुषवर्गः ॥ ३. निर्गमित-निस्सारितमित्यर्थः ॥ ४. आग्रहनिकरामिधकूर्चम् ॥ ५. शाखासु ॥ ६. तेजः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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