Book Title: Bhuvanabhanukevalicariya
Author(s): Indahansagani, Ramnikvijay Gani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 48
________________ भुवणभाणुकेवलिचरियं " तब्भावे अज्ज मए आवणभाडयमुवजिअं नावि । "तस्सऽज्जणे वणिअपुत्तवित्तिसंपायणे चिंता ॥४२१|| * तस्संपत्तीए पुण भविस्सर कहं "गिन्वय गलाहो ? | तल्लाहे भोगुवभोगाइअमासंसए एसो ||४२२|| मममंतरायसत्तू चइज जइ कह वि हुज साहु तओ 1 इअ चिंतेइ "धणपिवासा संज णिअट्टझाण गओ ||४२३ || तयणु भयतनित्तों को वि नरो आगओ तर्हि तेण । वेसवणो पगते नीओ चिताउलो झत्ति ||४२४|| दंसेइ तस्स पुरिसी कर- सिर- कण्णाइआहरणरासिं । जेणं पुण विण्णायें चांराहरिओ अ एस त्ति ||४२५ || 'आगारेहिं तह इंगिएहि चिट्ठाविहीहि वयणेहिं । पुरिसाणं जाणिज्जइ जम्हा अंतरगओ भावो ||४२६|| तह वि धणपिवासा जं मा आहरणाणि सामिअ ! चपसु । जं अग्गओ भविस्सइ करिस्सए तमिअ पेरेइ ||४२७|| Jain Education International तत्तो घेप्पर जो अप्पमुल्यकयाणगाण दाणेण 1 आहरणाई ताई तक्करओ तक्खणेण गओ ||४२८| सप्पिट्टमागपहिं च रायपुत्तेहि बंधिओ वणिओ । "लुत्तसहिओ चिअ कओ पुरओ सो "साहणिज्जंतो ||४२९|| एहिं किज्जते विगोवणे रायमग्गमज्झम्मि । रायउले जो गहिओ कहिओ आहरणवित्तंतो ॥४३०॥ पंचन्हं गेहाईं च साइणीए वि परिहरिज्जेति । यं कर्यं न सचं अवहरिआहरणचोरेण || ४३१|| भूवइणा आणत्तो वणिओ वज्झो असज्झरोगु व्व । तत्तो मिलिएण महाजणेण राया य विण्णत्तो ||४३२|| १. तद्भावे ॥ २. आपण भाटकम् - हस्यापि भाटकमित्यर्थः ॥ ३. तस्यार्जने ॥ ४. तत्सम्प्राप्तौ ॥ ५. गृहव्ययकलाभः || ६. आशंसति ॥ ७ धनपिपासा सञ्जनितार्त्तध्यानगतः ॥ ८. तदनु भयभ्रान्तनेत्रः ॥ ९. कर- शिरःकर्णादि - आभरणराशि ॥। १०. एतत्समानार्थकं पद्यं संस्कृते एवम् - आकारैरिङ्गितैर्गत्या चेष्टया भाषणेन च । नेत्रवक्त्रविकाराभ्यां ज्ञायतेऽन्तर्गतं मनः || सुभाषितरत्नभाण्डागारे तृतीयप्रकरणे राजनीतौ श्लो. २२६.१. १४७ ।। ११. लोप्त्रसहितः, लोप्त्रम् -लुष्टितं वस्तु ॥ १२. संहन्यमानः ॥ १३. आज्ञप्तः वणिग् वध्यः असाध्यरोग इव ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170