Book Title: Bhuvanabhanukevalicariya
Author(s): Indahansagani, Ramnikvijay Gani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 27
________________ सिरिइंदहंसगणिविरइयं रंजेइ जणं राया विजावंतो विणोअविहिपवणो' । न कहं जइ जस्साऽऽणणघरम्मि बंभीइ वसि जे १ ॥१२३॥ रयणेसु जह सुरमणी रमणी देवाण जह व नारीसु । जह वा गोसु सुरगवी तह जो अत्थि नयवंतेसु ॥१२॥ जहकालं साहिअपुरिसत्थतिओ जो अ सत्तिसंजुत्तो । परिणितो रिउघरवटैतरमाऽऽविट्ठकुमरीओ ॥१२५॥ जो सुणइ धम्ममेगं खणं कुणइ कीलणं च खणमेगं । परिसालंकरणं खणमेगं सव्वावसरविण्णू ॥१२६॥ गंगाजलुज्जलंगा तुरंगमा जस्स रायबारम्मि । खेलंता अवइण्णा मण्णे इंदस्स इत्थ हया ॥१२७॥ जस्स य पव्वयपाया रजअलंकारकारणं करिणो । "उड्ढट्ठिअएरावणपाडणपयडिअपयंडरया ||१२८।। वररायकन्नगाओ महंतभ्रवालवंसजम्माओ । सुरसुंदरिरूवाओ परिणीआ जेण राएण ॥१२९॥ "एगय पाभाइअवज्जतसरभुयझुणीओ जग्गंतो । सक्कसहासरिसाए परिसाए रेहिरो राया ॥१३०॥ आसीणो सीहासणि छत्तीसनिवउलसेविओ सययं । पुष्वाचलम्मि उइओ सहस्सकिरणो जह सहेइ ॥१३१॥ युग्मम् ॥ ताव भुवणभाणुजिणो उजाणवणम्मि आगओ जस्स । पुहवीए विहरंतो पडिबोहंतो य भव्वजणे ॥१३२॥ उजाणपालओ पुण जस्स जिणसमागमं निवेएइ । आणंदपुलइअंगो जो जाओ तस्स वयणेणं ॥१३३।। कंचणजीह-धण-कणगदाणेणं तोसए नरेसो त । जम्हा महंतदाणं विबुहाणं धम्मकज्जेसु ॥१३॥ पजिअपडहो गजिअपडुसद्दगइंदमारुहंतो अ । "धारिअमयंकमंडलउजलसेआयवत्तो अ ॥१३५।। अंतेउरपरिअरिओ मेलिअबहुरायलोअकलिओ अ । वीइज्जतो चमरेहिं आसेवयनरेहिं च ॥१३६।। १. प्रवणः तत्पर इत्यर्थः ॥ २. जे इति पादपूरणार्थकमव्ययं प्राकृते ॥ ३. अवतीर्णाः ॥ ४. ऊर्ध्व स्थितेरावणपातनप्रकटितप्रचण्डग्याः । रयः-वेगः ॥ ५. एकदा प्राभातिकावाद्यत्स्वराद्भुतध्वनेः जाग्रत् ॥ ६. राजते । ७. धारितमृगाङ्कमण्डलोज्ज्वलश्वेतातपत्रः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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