Book Title: Bhuvanabhanukevalicariya
Author(s): Indahansagani, Ramnikvijay Gani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 26
________________ भुवणभाणुकेव लिचरियं पुहवीए विहरतो जणमिच्छत्ततिमिराणि य हरंतो । भाणु ठव पयासंतो भुवणं जो सञ्चनामेण ॥११०॥ जणवंछिअत्थविअरणकप्पतरू चेव लब्भए सुगुरू । पुत्वभवपुण्णवसओ एरिसओ जम्मलक्खे वि ॥११३।। गाम-णगरठाणेसुं विविहपगारेसु देसनियरेसु । विहरइ 'असेसदंसी जणोवयारिक्कमेहाए ॥११२।। इतश्चतम्मि विजयम्मि नयरं विजयपुरं खोणिकामिणीमउडं । तिजयम्मि नत्थि अवरं नयरं सारं समं जस्स ॥११३।। दीसंति दोसु पासेसु जस्स विउलाऽऽवणाण सेणीओ । नंगरथिरीकयाई व पंतिट्ठिअजाणवत्ताई ॥११॥ जस्सावणवडिरयणरासिमिसाउ (१) रयणायरेण कया । उवया पीई काउं व नामसञ्चत्तणं घा वि ॥११॥ जत्थ वसंति जणोहा अणेगसयणगणनिञ्चकयसोहा । लहिअजिणधम्मबोहा विगयदोहा य अक्कोहा ॥११६।। सुद्धववहारसहिआ ववहारिजणा लसंति संतगुणा । जाणं दाहिणपाणी सोहंतो 'दाणकंकणओ ॥११७।। नयरे “विसारयगुणा 'जलसंगेणुज्झिआ "इसघणु व्व । जाणं मुहाणि लक्खणअलंकिआई सिपाणि व्व ॥११८॥ जग्गोरीओ सिंगाररसभरेण भरिआउ सरिअ व्व । नयरजणरंजणवयणमणोहराओ पिगीउ व्व ॥११९।। जत्थ य वणाणि गागममंडिअमज्झयाणि समणु व्य । निम्मलजलकलियाई सराणि माणससराई व ॥१२०॥ पासाया तुंगयरा मणोरहा सजणाण जह जम्मि । जेसु जिणप्पडिमाणं माणं तीरेइ को काउं? ॥१२॥ तत्थ नरनाहचंदो रज पालेइ चंदमोलिनियो । 'घणसारसारसोरहजसपसरो कामकेलिसरो ॥१२२।। १. अशेषदर्शी सर्वज्ञ इत्यर्थः ॥ २. विपुलाना आपणानां श्रेणयः ॥ ३. उपदा उपहार इत्यर्थः ॥ ४. दानकङ्कणकः ॥ ५. विशारदगुणाः पण्डिताः, विशिष्टशरत्कालगुणाश्च ॥ ६. जडसङ्गेन उज्झिताः-रहिताः, जलसङ्गेन च ॥ ७. इसघणु व्व इषघन इव आश्विनमासे घनः मेघो यथा जलसङ्गरहितः, तथा अत्र नगरे पण्डिता जडसङ्गरहिता इत्यर्थः । “ स्यादाश्विन इषः" इत्यमरः का. १ व. ४ श्लो. ११७ ॥ ८. स्वहस्तवत् ॥ ९. धनसारसारसौरभयशप्रसरः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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