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विषय
श्री श्लोक संख्या
२२४
२४१
२५९ २६२
२६४
२७२
३२१ ३२४ ३४४
विष्णु के कार्य और उनका निराकरण महादेव के कार्य और उनका निराकरण अविरत सम्यग्दृष्टी चतुर्थ गुणस्थान का स्वरूप सम्यग्दर्शन का लक्षण सम्यग्दर्शन के भद परमात्मा और उसके भेद जीव का स्वरूप अजीवपदार्थ आश्रय मंवर बध निर्जरा मोक्ष विरताविरत' का स्वरूप बारह व्रतों का स्वरूप पांचवें गुणस्थान में होने वाले ध्यान भद्रध्यान धर्मध्यान के भेद स्वरूप सालंबन धर्मध्यान और पंचपरमेष्ठियों का स्वरूप निरालंबन ध्यान पुण्य के भेद और उसके फल पुण्य के कारण पूजा की विधी दान, दान के भेद, विधि और फल प्रमत्त संयत गुणस्थान का स्वरूप
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३५७ ३६५ ३६६ ३७४
४२५ ४२६